कहानी १४२: यंत्रणा का सप्ताह: दूसरा दिन-यूनानियों के लिए यीशु का कोई उत्तर नहीं 

यूहन्ना १२:२०-३६

यह सप्ताह का दूसरा दिन था। मंदिर में तबाही मचाने के एक पहले कि यीशु का उमंग भरी प्रवेश, पर्व के माहौल में अभी भी गूँज रहा था। यीशु अविश्वासियों के अहास में प्रचार कर रहा था, और पैसे परिवर्त्तकों को बाहर रखते हुए, पिता के पवित्र मंदिर को शुद्ध रखने का प्रयास कर रहा था।

फ़सह पर्व पर जो आराधना करने आये थे उनमें से कुछ यूनानी थे। वे गलील में बैतसैदा के निवासी फिलिप्पुस के पास गये और उससे विनती करते हुए कहने लगे,“महोदय, हम यीशु के दर्शन करना चाहते हैं।”

अब यूनानी लोग दुनिया के सबसे कुतर्क ग्यानी थे। ह्म आज भी उनके महान दर्शनिकों के लेख पढ़ते हैं। उनके विचार बहुत ही संपन्न और गहरे थे कि जो उनकी भाषा संचार कर सकती थी वह और कोई भी भाषा नहीं कर सकती थी। रोमी लोगों को यूनानी भाषा इतनी ख़ूबसूरत लगी कि उन्होंने इसके बावजूद कि यूनानी लोगो को और उनके राष्ट्र को गुलाम बना लिया था, उन्होंने यूनानी भाषा को अपना बना लिया था। शिक्षित यूनानी बंधक रोम के कुलीन अगुवों के बच्चों के शिक्षक बन गए। जब इन लोगों ने यीशु के वचन को सुना, उन्होंने उस गहरायी को समझा जिसको वे ढूंढ रहे थे।

फिर अन्द्रियास और फिलिप्पुस ने यीशु के पास आकर कहा।

यीशु के पास उनके लिए कोई उत्तर नहीं था। अब उसके पास समय नहीं था कि उन शिक्षित लोगों के सामने अपने नाम कमाय। अविश्वासी लोगों के लिए यहूदियों के मसीह का समय हो गया था कि उन्हें उद्धार दिलाये। लेकिन यह इस तरह नहीं होने जा रहा था। उसे पिटक का कार्य पूरा करना था। उसने कहा:

“’मानव-पुत्र के महिमावान होने का समय आ गया है। मैं तुमसे सत्य कहता हूँ कि जब तक गेहूँ का एक दाना धरती पर गिर कर मर नहीं जाता, तब तक वह एक ही रहता है। पर जब वह मर जाता है तो अनगिनत दानों को जन्म देता है। जिसे अपना जीवन प्रिय है, वह उसे खो देगा किन्तु वह, जिसे इस संसार में अपने जीवन से प्रेम नहीं है, उसे अनन्त जीवन के लिये रखेगा। यदि कोई मेरी सेवा करता है तो वह निश्चय ही मेरा अनुसरण करे और जहाँ मैं हूँ, वहीं मेरा सेवक भी रहेगा। यदि कोई मेरी सेवा करता है तो परम पिता उसका आदर करेगा।'” यूहन्ना १२:२३-२६

यीशु संसार में उद्धार को लेकर आएगा, और वह उस तरह करेगा जिस तरह कि पिता ने नियुक्त किया है। परमेश्वर के काम संसार से कितने भिन्न थे। इंसान कर हर एक सतर्क यीशु के इस संसार को प्रभावित करने के लिए खींच सकता था। कोई भी विवेकशील वजह नहीं थी यह मानने के लिए कि उसकी मृत्यु जीवन के अंत को लाने के अलावा और कुछ ला सकता है। परन्तु यीशु मनुष्य के गिरे हुए दृष्टी से कार्य नहीं करने वाला था। वह आगे विश्वास के साथ स्थिरतापूर्वक बढ़ रहा था। वह उस जीवन को आदर्श बना रहा था जैसे कि वह चाहता है कि सब जो उसके पीछे चलते हैं, वैसे ही जीएं। परमेश्वर को आदर देने का यह एक रास्ता था। उसके पूर्ण आज्ञाकारिता में, उसने अपने भीतर एक मनुष्य का सा ह्रदय रखा।

उसने कहा:
“’अब मेरा जी घबरा रहा है। क्या मैं कहूँ,‘हे पिता, मुझे दुःख की इस घड़ी से बचा’ किन्तु इस घड़ी के लिए ही तो मैं आया हूँ। हे पिता, अपने नाम को महिमा प्रदान कर।'” –यूहन्ना १२:२७-२८

यीशु उस भीतरी समर्पण को दिखा रहा था जो पिता के आगे निरंतर आज्ञाकारिता में हो रहा था। और पिता ने उसे सुना। तब आकाशवानी हुई,
“’मैंने इसकी महिमा की है और मैं इसकी महिमा फिर करूँगा।'”

भीड़ ने उसे सुना। वे उसे सुनकर अचंबित हुए। तब वहाँ मौजूद भीड़, जिसने यह सुना था, कहने लगी कि कोई बादल गरजा है।दूसरे कहने लगे,“किसी स्वर्गदूत ने उससे बात की है।”

उत्तर में यीशु ने कहा,
“यह आकाशवाणी मेरे लिए नहीं बल्कि तुम्हारे लिए थी। अब इस जगत के न्याय का समय आ गया है। अब इस जगत के शासक को निकाल दिया जायेगा। और यदि मैं धरती के ऊपर उठा लिया गया तो सब लोगों को अपनी ओर आकर्षित करूँगा।” –यूहन्ना १२:३०-३२

एक बार फिर, एक विशाल गवाही खड़ी हुई कि यीशु ही प्रभु है। लोगों ने सुना और वे उन गम्भीर बातों को देखेंगे जो उनके चारों ओर हो रही थीं और वे उन्हें समझेंगे। परमेश्वर का न्याय आ रहा था। यह उसके पिता के कन्धों पर आएगा और वह शैतान के उन शक्तिशाली हत्यारों को नाश कर देगा जो वह मनुष्य के विरुद्ध में उपयोग करता है और पाप और मृत्यु का सर्वनाश करेगा। उसके अनंतकाल के मलवां जीवन के द्वारा, यीशु वह खरीदेगा जो कभी कोई मनुष्य खरीद नहीं पाया है।

जब यीशु भीड़ से बात कर रहा था, वह उन्हें उन सब बातों का संकेत दे रहा था जो वह करने वाला था। वह ऊपर उठाया जाएगा। हम इसे पढ़ सकते हैं और स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि उसका मतलब पर उठाया जाना था। उसके कीमती लहू के द्वारा, वह उद्धार के अधिकार को खरीदेगा जो मनुष्य के लिए है, जो अपने शर्म के कारण दरिद्र बन गए थे कि उसे खरीद नहीं सकते थे। जब भीड़ में लोगों ने यह सुना, वह यह नहीं समझ सके कि यीशु क्रूस के द्वारा मारा जाएगा। परन्तु वे जानते थे कि वह मरेगा।

उन्होंने कहा:
“’हमने व्यवस्था की यह बात सुनी है कि मसीह सदा रहेगा इसलिये तुम कैसे कहते हो कि मनुष्य के पुत्र को निश्चय ही ऊपर उठाया जायेगा। यह मनुष्य का पुत्र कौन है?’”

यहूदी मसीह के युगानुयुग के राज के विषय में भविष्यवाणियों को ढूंढ रहे थे। पुराने नियम में बहुत हैं। २शमूएल ७ ११-१३ में, जब शमूएल नबी दाऊद को इस्राएल का राजा बनाने के लिए अभिषेक कर रहा था, उसने यह परमेश्वर के वचन बोलते हुए कहा:

“‘और मैं अपने लोग इस्राएलियों के लिये एक स्थान चुनूँगा। मैं इस्राएलियों को इस प्रकार जमाऊँगा कि वे अपनी भूमि पर रह सकें। तब वे फिर कभी हटाये नहीं जा सकेंगे। अतीत में मैंने अपने इस्राएल के लोगों को मार्गदर्शन के लिये न्यायाधीशों को भेजा था और पापी व्यक्तियों ने उन्हें परेशान किया। अब वैसा नहीं होगा। मैं तुम्हें तुम्हारे सभी शत्रुओं से शान्ति दूँगा। मैं तुमसे यह भी कहता हूँ कि मैं तुम्हारे परिवार को राजाओं का परिवार बनाऊँगा।'”

दाऊद राजा ने स्वयं परमेश्वर के वायदे को भजन सहित ८९:३४ में लिखा:
“मैंने अपने चुने हुए राजा के साथ एक वाचा कीया है।
अपने सेवक दाऊद को मैंने वचन दिया है।
‘दाऊद तेरे वंश को मैं सतत् अमर बनाऊँगा।
मैं तेरे राज्य को सदा सर्वदा के लिये अटल बनाऊँगा।’”

यशायाह नबी ने भी यह घोषित किया:
“परमेश्वर हमें एक पुत्र प्रदान करेगा। यह पुत्र लोगों की अगुवाई के लिये उत्तरदायी होगा। उसका नाम होगा: “अद्भुत, उपदेशक, सामर्थी परमेश्वर, पिता—चिर अमर और शांति का राजकुमार।” उसके राज्य में शक्ति और शांति का निवास होगा। दाऊद के वंशज, उस राजा के राज्य का निरन्तर विकास होता रहेगा। वह राजा नेकी और निष्पक्ष न्याय का अपने राज्य के शासन में सदा—सदा उपयोग करता रहेगा। वह सर्वशक्तिशाली यहोवा अपनी प्रजा से गहरा प्रेम रखता है और उसका यह गहरा प्रेम ही उससे ऐसे काम करवाता है।'” –यशायाह ९:६-७

दानिएल ने आने वाले मसीहा का दर्शन देखा और कहा:

“रात को मैंने अपने दिव्य स्वप्न में देखा कि मेरे सामने कोई खड़ा है, जो मनुष्य जैसा दिखाई देता था। वह आकाश में बादलों पर आ रहा था। वह उस सनातन राजा के पास आया था। सो उसे उसके सामने ले आया गया।

“वह जो मनुष्य के समान दिखाई दे रहा था, उसे अधिकार, महिमा और सम्पूर्ण शासन सत्ता सौंप दी गयी। सभी लोग, सभी जातियाँ और प्रत्येक भाषा—भाषी लोग उसकी आराधना करेंगे। उसका राज्य अमर रहेगा। उसका राज्य सदा बना रहेगा। वह कभी नष्ट नहीं होगा। –दानिएल ७:१३-१४

यहूदी लोग उस विजयी मसीह कि राह देख रहे थे जिसका बाइबिल वर्णन करती है। और यहाँ यह यीशु था जो उन्हें अपनी मृत्यु के लिए तैयार कर रहा था। यह उनकी कहानियों के साथ ठीक नहीं बैठ रहा था। मनुष्य के पुत्र को मरना नहीं था। उसे तो विजय होना था! वे यकीन नहीं कर पा रहे थे कि विजय विनम्रता, समर्पण और मृत्यु द्वारा ही आएगी। परन्तु वफादार रहने के लिए उन्हें पूरी कहानी जानने कि ज़रुरत नहीं थी। उन्हें केवल उसपर भरोसा करना था जो वह उन्हें सिखा रहा था। यीशु ने कहा:

“’तुम्हारे बीच ज्योति अभी कुछ समय और रहेगी। जब तक ज्योति है चलते रहो। ताकि अँधेरा तुम्हें घेर न ले क्योंकि जो अँधेरे में चलता है, नहीं जानता कि वह कहाँ जा रहा है। जब तक ज्योति तुम्हारे पास है उसमें विश्वास बनाये रखो ताकि तुम लोग ज्योतिर्मय हो सको।’” –यूहन्ना १२:३५-३६

एक बार फिर यीशु ने अपने आप को समर्पण किया। परन्तु एक बार फिर, उन्होंने उसे अस्वीकार किया। एक दिन पहले के शानदार जश्न के बाद और उन सब चमत्कारों के बाद, भीड़ ज्योति के पीछे नहीं चली। वे उस अन्धकार को ही पकड़े रहे जहां वे अपने आप को सुरक्षित महस्सो करते थे। सो यीशु उन्हें छोड़ कर कहीं ऐसी जगह चला गया जहां से वे उसे ढूंढ नही। पते और यशायाह नबी कि भविष्यवाणी पूरी हुई:

“‘हमने जो बातें बतायी थी; उनका सचमुच किसने विश्वास किया यहोवा के दण्ड को सचमुच किसने स्वीकारा?'”
और:
“’उसने उनकी आँखें अंधी
और उनका हृदय कठोर बनाया,
ताकि वे अपनी आँखों से देख न सकें और बुद्धि से समझ न पायें
और मेरी ओर न मुड़ें जिससे मैं उन्हें चंगा कर सकूँ।’”

परमेश्वर ने यीशु कि महिमा को यशायाह नबी को प्रकट की और यशायाह ने अपनी किताब में उसका वर्णन किया। वह कितना चाहता था कि इस्राएल देश मसीह को स्वीकार कर ले, लेकिन फिर भी, आठ सौ साल पहले, वह जानता था कि ऐसा नहीं होगा। जिस पाप ने इस्राएल को त्रस्त कर दिया था, वही यीशु के समय में भी जीवित था। मानुष के पाप कि दुष्टता परमेश्वर के पवित्र राष्ट्र कि गहराई में पहुँच गया था, और इसलिए वह उसे मर देगा जो उज्जवल और सत्य है। उनके ह्रदय कठोर होंगे, और परमेश्वर उनके ह्रदय कि कठोरता को दूर करके उसे हमेशा के लिए बंद कर देगा। और फिर वह उनके विद्रोह को और घृणा को सबसे महान अच्छाई को लाने में प्रयोग करेगा। उनके घृणा के कारण यीशु मरेगा। और उसके कारण, उद्धार संसार में आएगा। स्वर्ग कि प्रतिभा, शैतान कि सब योजनाओं को नष्ट कर देगा और पूर्ण और अंतिम विजय को लेकर आएगा।

यीशु के इंकार के बीच, कुछ विश्वास बाकि थे, यहाँ तक कि अगुवों में भी। परन्तु वे जानते थे कि यीशु के पीछे चलने के लिए उन्हें बहुत बड़ी कीमत चुकानी होगी। उन्हें आराधनालय से बाहर निकला जा सकता है। वे अपनी आदर कि कुर्सी को खो देंगे। वे स्वर्गीय पिता कि प्रशंसा से बढ़ कर लोगों कि प्रशंसा को अधिक चाहते थे। उनके अपमान में, वे यीशु के लिए खड़े रहने में भयभीत थे।

यीशु ने पुकार कर कहा,
“’वह जो मुझ में विश्वास करता है, वह मुझ में नहीं, बल्कि उसमें विश्वास करता है जिसने मुझे भेजा है। और जो मुझे देखता है, वह उसे देखता है जिसने मुझे भेजा है। मैं जगत में प्रकाश के रूप में आया ताकि हर वह व्यक्ति जो मुझ में विश्वास रखता है, अंधकार में न रहे।

“यदि कोई मेरे शब्दों को सुनकर भी उनका पालन नहीं करता तो भी उसे मैं दोषी नहीं ठहराता क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने नहीं बल्कि उसका उद्धार करने आया हूँ। जो मुझे नकारता है और मेरे वचनों को स्वीकार नहीं करता, उसके लिये एक है जो उसका न्याय करेगा। वह है मेरा वचन जिसका उपदेश मैंने दिया है। अन्तिम दिन वही उसका न्याय करेगा। क्योंकि मैंने अपनी ओर से कुछ नहीं कहा है बल्कि परम पिता ने, जिसने मुझे भेजा है, आदेश दिया है कि मैं क्या कहूँ और क्या उपदेश दूँ। और मैं जानता हूँ कि उसके आदेश का अर्थ है अनन्त जीवन। इसलिये मैं जो बोलता हूँ, वह ठीक वही है जो परम पिता ने मुझ से कहा है।’”
–यूहन्ना १२:४४-५०

यीशु परमेश्वर कि ओर से बोलने कि घोषणा कर रहा था। या तो वह सही था, और संसार में सबको उसके आगे झुकना चाहिए, या फिर वह गलत था, और सबसे घिनौना झूठ बोल रहा था। परमेश्वर कि ओर से कौन बोल सकता है? जिसने सब कुछ बनाया उसका अधिकार कैसे चला सकता है? फिर भी उसने किया। क्या वह पागल है? क्या वह पूर्णरूप से दुष्ट था? या फिर वह जीवित परमेश्वर का पुत्र था? उसके अपमानजनक वचन अत्यंत थे कि केवल वे ही एक विकल्प था जो उसने भीड़ को दिया था। जिसे उनके अगुवे इतनी नफरत करते हैं उसके साथ वे क्या कर सकते थे? उनकी वफ़ादारी कहाँ जाएगी? जब परमेश्वर नगर में आएगा तब इस संसार के मनुष्य क्या करेगा?

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