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कहानी १७६: मरियम की आवाज

हम निश्चित रूप से नहीं कह सकते है कि मरियम मगदलीनी ने क्या सोचा और महसूस किया होगा जब वो यीशु के पीछे चलती थी और उनकी मृत्यु और जी उठने से गुजरी। बाइबल हमें कुछ करीबी चित्र देती है जो हमें कल्पना करने में मदद करती है कि उसने क्या कहा होगा। यूहन्ना प्रेरित हमें यीशु के जी उठने की कहानी का लम्बा संस्करण, मरियम के आँखों देखी से बताता है। यीशु ने बहुत महान, भव्य, और शानदार काम किए और कई महाकाव्य घटनाए हुई जब उन्होंने येरूशलेम को ऊपर नीचे कर दिया।  लेकिन, मरियम की कहानी में हम देखते है कि कैसे मसीह के लिए अपने प्रिय जनों के प्रति कोमलता एक प्राथमिकता थी। हम यह भी देखते है कि उनका रिश्ता अपने चेलों के साथ शिक्षक और छात्र जैसा अवैयक्तिक नहीं था – बल्कि उससे बहुत बड़ के था। वह एक बिना दिल के कट्टरपंथी आदेश देने वाला देवता नहीं था। यीशु प्यार करते थे, और वे उसके प्यार को महसूस करते थे और उसकी लालसा करते थे। और वे बदले में उसे प्यार करते थे। तो, यहाँ पर उस प्रेम का चित्रण है जो उस व्यक्ति ने महसूस किया होगा जिसको यीशु ने पुनरुथान के बाद सबसे पहले प्रकट होने के लिए चुना।

जब मैंने गिरफ्तारी के बारे में सुना, मुझे समझ में नहीं आया कि मै क्या करू। यह एक कुल आश्चर्य की बात नहीं थी। वे सालों से प्रभु को गिरफ्तार करना चाहते थे, पर किसी तरह, यीशु हमेशा सहज प्रयास के साथ ऐसा होने नहीं देते थे। बल्कि इस बात से हम बहुत मनोरंजित रहते थे। लेकिन इस बार यह वास्तव में हुआ, और इसका विश्वास करना मुश्किल था। यूहन्ना, यीशु की माँ और मुझे लेने आया था। शहर भयंकर कोलाहल में था। यह सब द्वेष कहां से आया? उसने संभवत: ऐसा क्या किया था?वो इधर उधर की जगाहों में हमे चंगाई देता। उन्होंने मुझे चंगा किया। इस बात का कोई मतलब नहीं बनता है।

हम भीड़ में खड़े होकर यह सब देखते रहे। यह भयानक था। सैनिकों ने इन भयानक कीलों को लेकर उनकी कलाई में धड़ से घुसा दिया। बेचारी मरियम। वह उनके हर दर्द से पिस गई। रक्त भयानक था। ठठ्ठा करने वाली भीड़, भयंकर सैनिक, और वो लानत भरे धार्मिक नेता बस वहाँ खड़े रहे। लेकिन किसी तरह, यूहन्ना, मरियम और मैं उनके बहुत पास थे, इतने पास कि सब कुछ पृष्ठभूमि में फीका हो गया।

जबकि वो क्रूस पर लटके थ, तो भी उनकी आवाज कोमल और प्रभावशाली थी। यह उन लोगों को समझाना मुश्किल है जो उन्हें नहीं जानते थे। उनमे महिमापूर्ण गौरव था, जबकि वह नग्न लटके थे, और गंदगी, पसीने और खून से लथपथ थे। अँधेरा एक दया का रूप था, और भूकंप जिसने धरती हिला दी, वो मेरे क्रोध और क्षति की शारीरिक अभिव्यक्ति थी। मै दुनिया को ऐसी हिंसा से झिंझोड़ना चाहती थी, जिसको वो अनसुना नहीं कर सकती थी, और कहना चाहती थी “क्यों?”. मैं चीखना चाहती थी “तुम ऐसा कैसे कर सकते हो?”

लेकिन उसने ऐसा किया, और वह चला गया। लेकिन मैं उसे वहां नहीं छोड़ पाई। मैं बस वहाँ खड़ी रही, मानो लकुआ मार गया हो – जब उन्होंने यीशु के शरीर को नीचे उतरा। वहां था मेरा प्रभु – शिथिल और टूटा हुआ। उसकी मां कितना रोई। आरिमथिया के यूसुफ उनका शरीर लेने आए, पर मै अब भी उस जगह को नहीं छोड़ पाई। मैं उनके साथ उनके पीछे चली गई, और मरियम भी मेरे साथ शामिल हुई। मुझे पता लगाना था कि वे उसे कहाँ ले जा रहे है। मुझे उनके साथ साथ जाना था। मैं छोड़ नहीं पा रही थी। वे उन्हें सफेद कपड़े पहनाने लगे और हम कब्र के सामने बैठ गए। वे बाहर आए और एक बड़े पत्थर के साथ उनकी कब्र को बंद कर दिया। मेरा दिल चिल्ला उठा “यह अंत नहीं हो सकता!” ऐसा कुछ अवश्य होगा जो हम कर सकते थे। यह बहुत छोटा था, बहुत जल्दी। जुलूस कहां थी? सारे यरूशलेम को इस मौत का विलाप करना चाहिए था। पूरी दुनिया को ठहर कर जीवन भर दुःख मानना चाहिए था। तो हम चले गए और वह एकलौता काम किया जो हम कर सकते थे। हम गए और उनके शरीर के लिए अधिक मसाले तैयार करने लगे। हम और कैसे अपने प्रभु का सम्मान कर सकते थे? हम और कैसे उसे फिर से देख सकते थे?

परमेश्वर मुझे माफ करें, लेकिन वो उच्च और पवित्र सबत अति पीड़ादायक था। यह मेरे और मेरे प्रिय के बीच एक बड़ी बाधा की तरह था। मुझे उनके पास जाना ही था। मुझे उनके पास जाना था –  सिर्फ उसको छूने के लिए जिसने मुझे छुआ था।

यीशु अक्सर कहानियाँ बताते कि कैसे जो लोग सबसे अधिक प्यार करते थे, उन्हें सबसे ज्यादा माफी की जरूरत होती थी। मुझे लगता है कि यह मेरी हताशा बताती हैं। यीशु के पीछे चलने वाली महिलाओं में से बहुत सी सम्मानजनक तरीके में उसके पास आई। उनका विवाह सत्ता और धन के पुरुषों के साथ हुआ था, और उन्होंने इसका इस्तेमाल परमेश्वर को आशीषित करने और उनकी सेवकाई को आगे बड़ाने के लिए किया। उनके पास देने के लए बहुत कुछ था। मैं कल्पना भी नहीं कर सकती हूँ कि ऐसा कैसा होता होगा। मेरी दुनिया बहुत अलग थी। मेरा परिवार उस प्रकार का था जो अपने बच्चों के जीवन में शैतानी बंधन को आमंत्रित करता था। जब मैं यीशु से मिली, उस समय सात दुष्ट आत्माए मुझे परेशान कर रहीं थी। उसने मुझे अपमान और एक अलगाव के जीवन की ओर ढकेला … मैं बहिष्कृत थी। मुझे अपने साथ किसी तरह का संबंध स्वीकार करना शर्मनाक लगता था। मुझे छुटकारे का कोई सपना नहीं था। अगर मुझे छुटकारा मिलता भी, मेरे पास प्यार या स्वीकृति के लिए कोई आशा नहीं थी। मग्देला जैसे एक गांव की स्मृति बहुत लंबी है। चाहे कितना परिवर्तन मेरे में आ जाए, मैं हमेशा अपने शर्म के लिए जानी जाउंगी। किसी कारण, मुझे निंदा के जीवन के लिए चुना गया था। परमेश्वर का हाथ मेरे विरुद्ध था।

लेकिन तब यीशु आए, और सब कुछ बदल गया। उन्होंने मेरे उत्पीड़कों को वापस भेजा। लेकिन उससे बड़कर, उन्होंने खुद को मेरे लिए दे दिया। उन्होंने मुझे प्यार किया। और उनके प्यार की वजह से, मैं देखभाल के एक पूरे समुदाय में ले ली गई। लोग जिन्होंने सारी ज़िन्दगी मुझे नहीं स्वीकारा, अब मुझे यीशु के प्यार की रोशनी में देख रहे थे। उनकी अपनी मां मुझसे प्यार करती थी। यह घर था।

मै सुबह तड़के, सलोमी की मां के साथ, कब्र के लिए निकल पड़ी। मुझे लगता है कि हम दोनों बहुत लालसा से वहां गए थे। मैं सिर्फ उनके साथ, उनके बाजू में कुछ अधिक क्षणों को बिताना चाहती थी। मै उनको एक सभ्य दफ़न से सम्मानित करना चाहती थी। हम इसी विचार में थे कि हम पत्थर को कैसे हटायेंगे। लेकिन जब हम वहां पहुँचे, हम सदमे में वहां खड़े हो गए। किसी ने हमसे पहले आकर भारी पत्थर को लुढ़का दिया था। रोमी सैनि,क जो वहां पहरेदारी कर रहे थे, चारों ओर चित्त पड़े हुए थे, मानो कोई गहरी नींद में हो। हम शरीर को देखने के लिए अंदर धीरे से गए। वह वहाँ नहीं थे। मेरा दिल सबसे नीचे, गहरी निराशा में लांघ गया।

अचानक, दो पुरुष शानदार, चमकदार सफेद में दिखाई पड़े। मरियम और मैं भूमि पर अपने चेहरे करके गिर गए। हमने पढ़ा था कि स्वर्गदूत से मिलना कैसा होता है, लेकिन अभी तक किसी ने मुझे इसके लिए तैयार नहीं किया। यह एक ही क्षण में प्रतिभाशाली, भयानक और आनाद्पूर्ण था।

” “तुम मृतकों में जीवितों को क्यूँ ढूँढ रहे हो?  “उन्होंने पुछा। मैं वास्तव में उनका मतलब पकड़ नहीं पाई, लेकिन वे बोलते गए, “‘डरो मत, क्यूंकि मै जानता हूँ तुम किसे ढूँढ रहे हो। वह यहाँ नहीं है, वह जी उठा है! याद करो कि जब वो तुम्हारे साथ यहाँ गालील में था तो उसने तुम्हे क्या बताया था- यह आवश्यक है कि मनुष्य का पुत्र पापी पुरुषों के हाथों में डाल दिया जाए, क्रूस पर चढ़ाया जाए और तीसरे दिन फिर से उठाया जाए। “‘

अचानक, मुझे यीशु के शब्द याद आए। मैं उन्हें कैसे भूल गई थी? क्या यह सब एक योजना थी?

स्वर्गदूतों ने फिर बोला: “”जल्दी जाओ, उनके चेलों को बताओ कि वो मुर्दों में से जी उठा है। वह गलील में तुम से पहले जा रहा है, वहाँ तुम उन्हें पाओगे, जैसे उन्होंने तुमसे कहा। ‘”

फिर स्वर्गदूत वहां से चले गये। मरियम और मैं कब्र से बाहर भागते हुए आए। जब हम बाहर आए, तो  हम कांप रहे थे, और पूरी तरह से चकित खुशी और चौंकाने वाले भय से जकड़े हुए थे। फिर हम चेलों को यह अकल्पनीय अच्छी खबर बताने के लिए भाग निकले।

बेशक, जब हम वहाँ पहुंचे, तो चेलों ने सोचा कि हम बकवास कर रहे थे। हमने शायद अपने उत्साह में ऐसा थोड़ा किया भी हो। लेकिन जो हमने कहा, उसने पतरस और यूहन्ना के तहत एक चिंगारी जैसी जलाई। वे भागते हुए कब्र की ओर निकले। मैं उनके पीछे – पीछा चली गई। स्वर्गदूतों के शब्दों धीरे धीर वास्तविक लग रहे थे, लेकिन कब्र अभी भी अपने प्रभु के पास होने के लिए सबसे अच्छा तरीका लग रहा था।

मैं पिछले कुछ दिनों दु: ख में इतनी घिरी हुई थी, कि मै घटनाओं के इस उलट फेर को समझ नहीं पा रही थी। पतरस और यूहन्ना आए और गए, लेकिन मैं वहीँ ठहरी रही। मैं बस छोड़ ही नहीं पा रही थी। ऐसा लग रहा था कि स्वर्गदूतों ने जो कहा, उससे कोई फर्क नहीं था—- वह अभी तक गायब था और गलील दूर, बहुत दूर था।

मेरे दु: ख ने मुझे फिर से घेर लिया। मैं कब्र के अंदर एक बार और देख कर रोने लगी। वो दो स्वर्गदूत एक बार फिर वहाँ थे। “‘नारी, तू क्यों रोती है?” उन्होंने कहा। मैं एक बेवकूफ की तरह लग रही होंगी, लेकिन यह सब अनंतकाल की दूसरी ओर समझने में बहुत आसान था। “‘क्योंकि वे मेरे प्रभु को उठा ले गए है, और मैं नहीं जानती कि उन्होंने प्रभु को कहाँ रखा है।”

और फिर वह मेरे पास आए। मैं यह नहीं जानती कि उन्होंने मुझे उन्हें पहली बार देखने के लिए क्यूँ चुना। शायद इसलिए क्यूंकि मेरी जरूरत सबसे बड़ी थी। मजेदार बात यह है, कि मैंने उन्हें पहली बार में पहचाना नहीं। इस अजीब आदमी ने मुझसे पूछा, “‘नारी, तू क्यों रोती है? तुम किसे खोज रही हो?” मुझे लगा यह माली था। स्वर्गदूतों को यह बहुत मनोरंजक लग रहा होगा। मैंने कहा: “‘सरकार, अगर आपने उन्हें उठाया है, तो मुझे बताएँ की आपने उसे कहाँ रखा है ताकि मै उन्हें ले जाऊं।”

और फिर यीशु ने मुझसे कहा,’ मरियम’, और मैं जान गई। उन्होंने जैसे ही मेरा नाम लिया, सब कुछ बदल गया। मैंने उनकी ओर मुड़ा और कहा, “‘गुरु!” मैं उनके चरणों में गिर गई और अपने हाथों से उनके पैरों को पकड़ लिया – ऐसा जैसे कि मै उन्हें कभी न छोडूं।

मुझे लगता है कि यीशु हँस रहे थे जब उन्होंने कहा, “मुझे पकड़ों मत,  क्यूंकि मै अभी तक अपने पिता के पास नहीं पहुंचा हूँ। इसके बजाय, मेरे भाइयों के पास जाओ और उन्हें बताओ, “मैं अपने पिता और तुम्हारे पिता, अपने परमेश्वर और तुम्हारे परमेश्वर के पास लौट रहा हूँ।”

मैं उनसे हमेशा के लिए चिपटी रह सकती थी, लेकिन मुझे पता था कि मुझे वो करना था जो उन्होंने आदेश दिया। तो मै यह खबर के साथ चेलों के पास गई। आने वाले दिनों और हफ्तों में, हम सब को उन्हें देखने को मिला, और उन्होंने हमें बहुत कुछ सिखाया। उनके पास होना बहुत संतोषजनक रहा था, और जिस समय तक वह स्वर्ग में चढ़ गए, मुझे लगता है कि हम सब यह समझ गए थे कि हम वास्तव में उन्हें खो नहीं रहे थे – जबकि वो एक बहुत अलग तरह से उपस्थित होंगे। लेकिन यह मेरे दिल को नहीं बदलता है। इस दुनिया के प्रस्ताव, उस जीवन की अधिकता जो हम परमेश्वर की उपस्थिति की चमक में महसूस करेंगे, फीके और तुच्छ लगते है। मेरी आशा है कि एक दिन, मैं आपको वहां पाउंगी।

कहानी १७५: जी उठा

मत्ती २८:१-१०, मरकुस १६:१-२२, लूका २४:१-१३, यूहन्ना २०:१-१८

Ressurrection of Christ

रविवार की सुबह आई। यह यहूदी सप्ताह का पहला दिन था। मरियम मगदलीनी और दूसरी मरियम सुबह होने से पहले अपने बने मसालों के साथ तैयार थी। जैसे जैसे सूरज पूर्वी आकाश को हल्का करने लगा, वे अन्य महिलाओं के साथ कब्र के लिए निकल पड़ी। उनकी यात्रा में कुछ बिंदु पर ज़मीन हिलने लगी। यह एक और भूकंप था। इसका क्या मतलब हो सकता है? अक्सर बाइबिल में भूकंप परमेश्वर के आने का एक संकेत था।

लेकिन शायद उनके विचार अभी भी अपने दु: ख से भरे हुए थे। वे भूकंप के आश्चर्यजनक, अद्भुत अर्थ का अनुमान नहीं लगा सकीं। क्यूंकि असल में, परमेश्वर आए थे। यीशु मरे हुओं में से जी उठे थे! और जब एक शानदार स्वर्गदूत उसके कब्र पर पत्थर को लुड्काने आया था, पृथ्वी कांप उठी। जब रोमी पहरेदारों ने उस चमकदार स्वर्गीय प्राणी को देखा, तो वे भय से भर कर ज़मीन पर गिर गए।

स्वर्गदूत यीशु को बाहर निकलने में मदद के लिए नहीं आया था। परमेश्वर अपने अविनाशी जीवन की शक्ति के आधार पर जी उठे थे। वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर की शक्ति में जी उठे। और जब स्वर्गदूत ने पत्थर लुढ़काया, तो वह परमेश्वर के काम का एक प्रकाशन, एक घोषणा थी! क्या ही महान घटना का एक अकाट्य सबूत!

लेकिन महिलाओं को अभी तक यह पता नहीं था। जैसे वो साथ चल रहीं थीं, वे सोच में थी कि पत्थर को कैसे हटाया जाए। क्या रोमी पहरेदार उनको कब्र के पास जाने देंगे?

जब वे वहां पहुंचे, तो उन्होंने पाया कि अब यह एक प्रश्न नहीं रहा। हैरान रोमन पहरेदारों के शव चारों ओर पड़े हुए थे। क्या चल रहा था? कब्र के अंदर जा कर उन्होंने पाया कि शव तो गायब था। यह कैसे हो सकता है? वे प्रभु को कहाँ ले गए थे? वे भ्रम और थके हुए, दु: ख में एक दूसरे को देखने लगे।

अचानक, दो स्वर्गदूत शानदार सफेद कपड़ों में दिखाई पड़े। महिलाए डर में अपने चेहरे के बल ज़मीन पर गिर गई।

स्वर्गदूतों में से एक ने उन से पूछा, “तुम मृतकों में जीवितों को क्यूँ ढूँढ रहे हो? डरो मत, क्यूंकि मै जानता हूँ तुम किसे ढूँढ रहे हो। वह यहाँ नहीं है, वह जी उठा है! याद करो कि जब वो तुम्हारे साथ यहाँ गालील में था तो उसने तुम्हे क्या बताया था- यह आवश्यक है कि मनुष्य का पुत्र पापी पुरुषों के हाथों में डाल दिया जाए, क्रूस पर चढ़ाया जाए और तीसरे दिन फिर से उठाया जाए “‘

जैसे जैसे स्वर्गदूत बोलता गया, वैसे वैसे महिलाओं ने यीशु के शब्द याद किये।

स्वर्गदूत ने कहा: “‘जल्दी जाओ, उनके चेलों को बताओ कि वो मुर्दों में से जी उठा है। वह गलील में तुम से पहले जा रहा है, वहाँ तुम उन्हें पाओगे, जैसे उन्होंने तुमसे कहा। ‘”

महिलाए डर और खुशी से काँप उठी। वे शिष्यों को यह अद्भुत खबर बताने के लिए कब्र से चल पड़ी। उन्होंने रास्ते में किसी से बात नहीं की,यह डर से कि वे इस आश्चर्यजनक खबर के बारे में क्या कह दे। उन्होंने ग्यारह को पाया और अपने आँखों देखा हाल उन्हें बताया। महिलाओं के शब्द बकवास की तरह लग रहे थे। और कुछ हद तक, वे थे। यहां तक ​​कि मरियम मगदलीनी की रिपोर्ट अभी उलझन से भरी थी। “‘वे प्रभु को कब्र से बाहर ले गए है, और हम नहीं जानते है कि उन लोगों ने उन्हें कहाँ रखा है'” उसने घोषणा की। अपनी हताशा में, उसके पास सिर्फ एक ही ख्याल था। शानदार स्वर्गदूतों के शब्द उसके लिए कोई मान्यता नहीं रखते थे। उसके लिए सिर्फ प्रभु को ढूँढना मायने रखता था।

पहले तो चेलों ने महिलाओं पर विश्वास नहीं किया। लेकिन जब वह इन शब्दों को समझने लगे, पतरस को लगा कि इस बात में सच्चाई हो सकती है! वह कूद कर कब्र की ओर भागा। यूहन्ना भी बहुत पीछे नहीं था। वे पूरी ताकत लगा के भागे। यूहन्ना जवान और तेज़ था और सबसे पहले कब्र पर पहुंचा। वह प्रवेश द्वार पर रुका और एक शरीर या एक दूत या एक चिन्ह के लिए खोजने लगा। वहाँ, जहाँ यीशु को रखा गया था, बड़े तरीके से कपड़ा में तह लगा हुआ अलग रखा था। चेहरे का कपड़ा एक ओर अलग से रखा था। पतरस यूहन्ना को पार कर सीधे कब्र में घुस गया। उसने भी वो कपड़े की पट्टियाँ देखीं। यूहन्ना पतरस के पीछे आया, और इसके अर्थ के बारे में दोनों सोचने लगे। यूहन्ना ने विश्वास किया पर फिर भी विचारा। दोनों इस बात की पूर्णता को नहीं समझ पा रहे थे। सांसारिक रूप से, यह नए तथ्य कुछ अटपटे लग रहे थे। वे इस बात को नहीं समझ पा रहे थे कि येशु को मुर्दों में से जिंदा होना था। चेले कब्र छोड़ कर चले गए और वापस अपने घरों को लौट गए।

मरियम मगदलीनी उन लोगों के पीछे कब्र की ओर बड़ रही थी। वह वहाँ खड़े होकर रोने लगी। क्यूंकि उसके पास कहीं जाने को नहीं था। प्रभु यीशु उसकी आशा और जिंदगी बन गए थे। वह द्वार के पास गई और अंदर कदम रखा। एक बार फिर, दो स्वर्गदूत उसके समक्ष पेश हुए। एक, जहाँ यीशु को रखा गया था, उसके सिरे और उसके पैर में बैठे थे।

आने वाले दिनों में, मरियम और चेलों ने इसके बारे में विचारा होगा। क्यूंकि यह वही चित्र था जो वाचा के सन्दूक के ढक्कन पर पाया जा सकता था और जो केवल परम पवित्र में रखा जाता था। यह सोने का डब्बा परमेश्वर ने मूसा के लिए बनाया था। ढक्कन ही शुद्ध सोने का बना था, और उसे परमेश्वर की दया की गद्दी बुलाई जाती थी। परमेश्वर ने मूसा को निर्देश दिए कि सन्दूक के दोनों छोर पर दो, गौरवशाली, सुनहरे स्वर्गदूतों की प्रतिमा लगाईं जाए। उनके पंख दया की गद्दी पर फैले थे। यह सन्दूक खोने से पहले, इसराइल के देश की सबसे पवित्र चीज़ थी, और इसकी छवि हर यहूदी के मन में गड़ी थी। अब, मसीह स्वयं परमेश्वर की दया की गद्दी थे – वो महान प्रायश्चित जिसके द्वारा सारे मानव का उद्धार हो सकता है। जब यह दो स्वर्गदूत उनके बलिदान हुए शरीर की जगह पर इर्द गिर्द बैठे थे, तो क्या उन महिलाओं को यह समझ में आया होगा?

यह सारी गहरी और सुंदर चीज़े वो गौरवशाली सत्य थे जिन्हें आने वाले सालों में कलीसिया समझेगी और अनुभव करेगी। प्रेरित यूहन्ना ने अपने लेखन में यह सुनिश्चित किया। लेकिन स्वर्गदूतों की उपस्थिति में रो रही वहां खड़ी तबाह मरियम के दिमाग में, यह बातें नहीं थी।

“‘नारी, तू क्यों रोती है?” उन्होंने कहा.

वह सिर्फ प्रभु के बारे में ही सोच सकती थी। “‘क्योंकि वे मेरे प्रभु को उठा ले गए है, और मैं नहीं जानती कि उन्होंने प्रभु को कहाँ रखा है'” उसे अभी भी उनके जी उठने की आशा नहीं थी, लेकिन उसका प्यार इतना विशाल था कि उसे अपने प्रभु को खोजना था।

जैसे ही उसने यह कहा, वह जाने को निकली, लेकिन वहाँ एक आदमी खड़ा था। यह यीशु था, लेकिन उसे यह पता नहीं था। उसे लगा कि यह माली है।“‘नारी, तू क्यों रोती है?'” यीशु से पूछा। “‘तुम किसे खोज रही हो?”

उसने कहा, “‘सरकार, अगर आपने उन्हें उठाया है, तो मुझे बताएँ की आपने उसे कहाँ रखा है ताकि मै उन्हें ले जाऊं।”

वह अपने उद्धारकर्ता को कितना प्यार करती थी! क्या आप इस लालसा को सुन सकते हैं? यीशु भी सुन सकते थे। “‘मरियम,” उन्होंने कहा। जैसे ही उन्होंने मरियम का नाम लिया, वो पहचान गई कि वो कौन थे। “‘गुरु!'” वह बोल पड़ी। वह धरती पर गिर पड़ी और अपने को उनके पैरों से लपेट लिया।

” मुझे पकड़ों मत’, यीशु ने कहा, ” क्यूंकि मै अभी तक अपने पिता के पास नहीं पहुंचा हूँ। इसके बजाय, मेरे भाइयों के पास जाओ और उन्हें बताओ, “मैं अपने पिता और तुम्हारे पिता, अपने परमेश्वर और तुम्हारे परमेश्वर के पास लौट रहा हूँ।”

मरियम बेसुध उत्साह से भर गई। उसका प्रिय प्रभु गायब नहीं हो गया था! उन्होंने उसे छोड़ा नहीं था! उसका उत्तम प्रेम जिंदा था! वह चेलों को यह अकल्पनीय अच्छी खबर बताने के लिए भागी। “‘मैंने प्रभु को देखा है!'” उसने घोषणा की। फिर उसने इन बातों का विवरण दिया। क्या आप उनके सदमे और उत्तेजना की कल्पना कर सकते हैं? क्या आप उन सवालों  की कल्पना कर सकते हैं जो उठे होंगे? और अब आगे क्या होने जा रहा था?

कहानी १७१: क्रूस पर

मत्ती २७:३५-५०; मरकुस १५:२४-३७; लूका २३:३३-४६; यूहन्ना १९:१८-३०

Jesus christ in heaven

यीशु उस पीड़ा के साथ क्रूस पर था, उसके पास बहुत से खड़े जो उसे देख रहे थे। ऐसा लगता था कि कुछ हो जाएगा। क्या वह इस हास्य जनक अनुकरण को अपनी सामर्थ से जीत पाएगा?

पास से जाते हुए लोग अपना सिर मटकाते हुए उसका अपमान कर रहे थे। वे कह रहे थे,“अरे मन्दिर को गिरा कर तीन दिन में उसे फिर से बनाने वाले, अपने को तो बचा। यदि तू परमेश्वर का पुत्र है तो क्रूस से नीचे उतर आ।”

शिक्षक और अगुवे अपनी जीत पर जश्न मना रहे थे। उसकी हसी उड़ाते हुए उन्होंने कहा,“’दूसरों का उद्धार करने वाला यह अपना उद्धार नहीं कर सकता! यह इस्राएल का राजा है। यह क्रूस से अभी नीचे उतरे तो हम इसे मान लें।'” पुराने नियम से कुछ बातों को लेकर दुसरे यह कहने लगे,”‘यह परमेश्वर में विश्वास करता है। सो यदि परमेश्वर चाहे तो अब इसे बचा ले। आखिर यह तो कहता भी था, ‘मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ।’”

उन लुटेरों ने भी जो उसके साथ क्रूस पर चढ़ाये गये थे, उसकी ऐसे ही हँसी उड़ाई। सिपाहियों ने भी उनके साथ मिलकर हसी उड़ाई और कहा,“यदि तू यहूदियों का राजा है तो अपने आपको बचा ले।”

इन सब दोष लगाने वालों को यीशु ने कुछ नहीं कहा। हज़ारों दूत वहाँ खड़े उसे देख रहे थे जो स्वर्ग का सिंहासन का अधिकारी है और इस कष्ट और मृत्यु को सह रहा है। यीशु एक ही शब्द बोलकर अपने आप को ऊपर लेजा कर हटा सकता था। परन्तु यह उसके पिता कि इच्छा नहीं थी।

वहाँ लटकाये गये अपराधियों में से एक ने उसका अपमान करते हुए कहा,“क्या तू मसीह नहीं है? हमें और अपने आप को बचा ले।” परन्तु दूसरे डाकू का ह्रदय परिवर्तन हो गया था। उसने उन सब अपमानित करने वाली बातों को सुना और उस यीशु को देखा जो शांत था। यह मनुष्य कौन था जो उसके साथ क्रूस पर टंगा हुआ था?

दूसरे ने उस पहले अपराधी को फटकारते हुए कहा,“क्या तू परमेश्वर से नहीं डरता? तुझे भी वही दण्ड मिल रहा है। किन्तु हमारा दण्ड तो न्याय पूर्ण है क्योंकि हमने जो कुछ किया, उसके लिये जो हमें मिलना चाहिये था, वही मिल रहा है पर इस व्यक्ति ने तो कुछ भी बुरा नहीं किया है।”

फिर वह बोला,“यीशु जब तू अपने राज्य में आये तो मुझे याद रखना।”

यह यीशु किस प्रकार का इंसान था कि इस तरह उसका राजसी गौरव क्रूस पर बढ़ा कर दिखाया जा रहा है! यीशु ने उससे कहा,“मैं तुझ से सत्य कहता हूँ, आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा।”

अपने पीढ़ा के बीच में भी यीशु कि करुणा दिखाई पड़ती है। उसकी आत्मा कितनी महान थी। अवश्य वह परमेश्वर है!

थोड़े ही थे जो गुलगुता तक उसके साथ गए और वे यीशु से। प्रेम करते थे।  उसकी माँ, मरियम, उसकी बहन मरियम और मरियम मगदिलिनी, वे सब आये थे। उसका चेला यूहन्ना भी उनके साथ क्रूस पर आया। यीशु ने जब अपनी माँ और अपने प्रिय शिष्य को पास ही खड़े देखा तो अपनी माँ से कहा,“प्रिय महिला, यह रहा तेरा बेटा।” फिर वह अपने शिष्य से बोला,“यह रही तेरी माँ।”

यीशु सबसे बड़ा पुत्र था और मरियम एक विधवा थी। परिवार में उसका कर्तव्य था कि वह मरियम का ध्यान रखे। उसके चाहिता चेला यूहन्ना भी उसका चचेरा भाई था, और उसने वह कर्तव्य उसे सौंप दिया। और उसी समय से यूहन्ना मरियम को अपने घर ले गया।

यीशु को क्रूस पर चढ़े तीन घंटे हो गए थे और कुछ अद्भुद होने लगा था। फिर समूची धरती पर दोपहर तक अंधकार छाया रहा। दिन के तीन बजे ऊँचे स्वर में पुकारते हुए यीशु ने कहा,

“’इलोई, इलोई, लमा शबकतनी।’अर्थात,
“’मेरे परमेश्वर, मेरे परमेश्वर, तूने मुझे क्यों भुला दिया?'”

उसका चिल्लाना पीड़ा से भरा हुआ था, जो उन लोगों को याद करके था जो क्रूस के पास थे। यीशु ने ऐसा क्यूँ कहा? क्या उसे याद नहीं था कि वह क्रूस पर किस वजह से गया है? क्या वह नहीं जानता था कि यह अलगाव मनुष्य के पापों को सहने के लिए था। क्या उसने वास्तव में विश्वास कर लिया था कि परमेश्वर ने उसे सदा के लिए छोड़ दिया है?

गुलगुता पर जो यहूदी जमा थे, वे यीशु कि वाणी को पहचान सकते थे क्यूंकि उसने पुराने नियम से लिया था। महान विपत्ति के समय दाऊद राजा ने भजन सहित में लिखा था। फिर उन सब्दों में कोई संदेह नहीं था। दाऊद का विश्वास डगमगाने वाला नहीं था, वह प्रभु में मज़बूत होता जाता था। वह विश्वास में स्थिर था और किसी और कि ओर नहीं देखता था। वह पाप कि समस्या के हल के लिए किसी मनुष्य कि ओर नहीं देखता था और संकट के समय में परमेश्वर को कोस्ता नहीं था। इस भजन सहित में, दाऊद राजा ने अपनी आशा को परमेश्वर के छुटकारे पर केंद्रित किया हुआ था एयर केवल उसी को पुकारता था। यह परमेश्वर में गहरायी कि एक तस्वीर है। आइये इस भजन सहित से और पढ़ते हैं :

हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर!
तूने मुझे क्यों त्याग दिया है? मुझे बचाने के लिये तू क्यों बहुत दूर है?
मेरी सहायता की पुकार को सुनने के लिये तू बहुत दूर है।
हे मेरे परमेश्वर, मैंने तुझे दिन में पुकारा
किन्तु तूने उत्तर नहीं दिया,
और मैं रात भर तुझे पुकाराता रहा।
हे परमेश्वर, तू पवित्र है।
तू राजा के जैसे विराजमान है। इस्राएल की स्तुतियाँ तेरा सिंहासन हैं।                                  
हमारे पूर्वजों ने तुझ पर विश्वस किया।
हाँ! हे परमेश्वर, वे तेरे भरोसे थे! और तूने उनको बचाया।                                        
हे परमेश्वर, हमारे पूर्वजों ने तुझे सहायता को पुकारा और वे अपने शत्रुओं से बच निकले।
उन्होंने तुझ पर विश्वास किया और वे निराश नहीं हुए। –भजन सहित  22:1-5

आपने देखा कैसे दाऊद राजा ने परमेश्वर कि स्तुति करने में देरी नहीं की, जिस समय वह छुटकारे के लिए रुका हुआ था?

यीशु परमेश्वर से नहीं पूछ रहा था कि उसने उसे क्यूँ छोड़ दिया। वह एक मनुष्य कि तरह उसे जो परमेश्वर कि आज्ञाकारिता के प्रति दुःख उठा रहा था। अब तक, यीशु को क्रूस पर छे घंटे हो चुके थे। परमेश्वर का क्रोध मनुष्य के पाप के कारण आया था। यीशु ने अपने ही शरीर में उस भयानक संघर्ष को सहा। वह जानता था कि यह असीम क्लेश हमेशा के लिए नहीं है। एक यशस्वी विजय दूसरी और थी। अपने मनुष्य स्वभाव में होकर उसने पुछा,”‘और कितनी देर प्रभु?'”

यीशु ने जब अपने महान पूर्वजों के शब्दों को पुकारा, उसने उस भविष्यवाणी को पूरा किया जो भजन सहित में भी दी गई है। यह दोनों, दाऊद कि व्यक्तिगत प्रार्थना भी थी और मसीह के आने का सन्देश था!

जो पास में खड़े थे, उनमें से कुछ ने जब यह सुना तो वे बोले,“सुनो! यह एलिय्याह को पुकार रहा है।” दूसरे बोले,“ठहरो, देखते हैं कि इसे नीचे उतारने के लिए एलिय्याह आता है कि नहीं।” वे अभी यह सोच रहे थे कि यह व्यक्ति कौन है।

यीशु जानता था कि उसका समय आ गया है। उसने वो सब पूरा कर दिया था जिस काम से पिता ने उसे भेजा था। एक और वचन था जिसे पूरा होना था, सो उसने कहा,“‘मैं प्यास हूँ।'”

सिरके में डुबोया हुआ स्पंज एक छड़ी पर टाँग कर लाया गया और उसे यीशु को चूसने के लिए दिया। भजन सहित 69:21 के वचन पूरे हुए “…उन्होंने मुझे विष दिया, भोजन नहीं दिया। सिरका मुझे दे दिया, दाखमधु नहीं दिया।'”

जब यीशु पी चुका, उसने कहा,“पूरा हुआ।”

उन शांत शब्दों में यीशु ने घोषित किया कि समाप्त हुआ। जय मिल गई थी। सब कुछ बदल गया था। आदम के पाप से, इंसानियत ने परमेश्वर के विरुद्ध आवाज़ उठाकर शैतान के प्रति वफ़ादारी दिखायी, जिसका अंजाम पाप और मृत्यु था। परन्तु यीशु मनुष्य रूप में आया और दोनों पर विजय प्राप्त की और जीवन के मार्ग को दिखाया। उसके पृथ्वी पर जीवन का उद्देश्य पूरा हुआ और उसने ऊँचे स्वर में पुकारा,“हे परम पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों सौंपता हूँ।” यह कहकर उसने प्राण छोड़ दिये।

कहानी १६३: हर कोई दूर हो जाता है: गिरफ्तारी 

मत्ती २६:४६-५६; मरकुस १४:४३-५२; लूका २२:४७-६५; यूहन्ना १८:२-११

Jerusalem - mosaic of arresting of Jesus in Gethsemane garden

जब यीशु ने बगीचे के अंधेरे में प्रार्थना में घुटने टेके, तो उन्होंने अपने को पिता की इच्छा के सुपुर्त कर दिया। तब वह अपने पैरों पे उठकर अपने चेलों के पास गए। उन्होंने उन्हें एक बार फिर से सोया पाया। “‘बाद में सो कर अपना आराम ले लेना” उन्होंने कहा। “देखो, समय आ गया है , और मनुष्य का पुत्र पापियों के हाथ पकड़वाया जाएगा। उठो, हमें जाना है।”

यीशु ने यह बोलना खत्म ही नहीं किया था, जब वे लोग आ गए। कवच की आवाज़ और पैरों की गड़गड़ाहट सुनाइ दे रही थी और मशालों की लौ बगीचे के पेड़ों के अंधेरे में झिलमिला रही थी। यहूदा एक पुरुषों की टोली का नेत्रित्व कर रहा था। महायाजक, बड़े और फरी,सी रात की घटनाओं का एक हिस्सा बनने के लिए उत्सुक, अपनी लालटेन और हथियारों के साथ आए थे। वे अपने साथ रोमी सैनिकों की एक टोली भी लाए थे। कम से कम दो सौ पुरुष अपने हथियार ले कर आए थे, मानो जंग के लिए आए हो।

“‘तुम किसे चाहते हैं?'” यीशु ने पूछा , यह अच्छी तरह जानते हुए कि वे उसके पीछे आ रहे थे।

“‘यीशु नासरी'” उन्होंने जवाब दिया।

“‘मैं वही हूं,” प्रभु ने कहा। उनके शब्दों से, भीड़ वापस खिच कर जमीन पर गिर गई। क्या वो इसलिए गिर गए क्यूंकि परमेश्वर ने उनके सामने खुद को घोषित कर दिया था, या वे उसकी घोषणा की सरासर साहस से अचंबित हो गए?

फिर यीशु ने पूछा: “तुम किसे चाहते हो?” यीशु बिलकुल निर्भय थे और उन्होंने अपने को छिपाने का कोई प्रयास नहीं किया। उन्होंने पहले से ही अपने पिता का पालन करने का निर्णय किया था, और पिता ने यही घटनाए ठहराई थी। जब वे वापस होश में आए, तो उन्होंने कहा: “‘यीशु नासरी।”

प्रभु ने कहा: ” मैंने तुम्हे बोला था कि मै ही वो हूँ। अगर तुम मुझे ही ढून्ढ रहे हो, तो दूसरों को जाने दो।” यीशु अपने शिष्यों के बारे में बात कर रहे थे।  उन्होंने स्पष्ट रूप से खुद की पहचान करी और अपने आदमियों की रक्षा के लिए आगे कदम रखा। बस एक रात पहले ही, उसने कहा था कि वो परमेश्वर के दिए शिष्यों में से एक को भी नहीं खोएगा।बारह में से केवल एक को उन्होंने खो दिया था, लेकिन उसके कार्यों से यह पता चला कि वो मसीह का कभी था ही नहीं।

जैसे जैसे यहूदा ने यहूदियों के साथ योजना बनाई और साजिश रची, उसने उन्हें उस बगीचे के बारे में बताया जहाँ यीशु सोने के लिए हर रात अपने चेलों के साथ जाते थे। यह उसे गिरफ्तार करने के लिए सबसे सही जगह होगी। भीड़, जो उसके प्रति वफादार थी बहुत दूर, गहरी नींद में सोए रहे होंगे। वे उसकी रक्षा करने में सक्षम नहीं होंगे। वे लोगों के सामने उनके असंभव सवालों के बिना, यीशु को गिरफ्तार कर सकते थे।

लेकिन एक समस्या थी। रात के अंधेरे में, यह पता लगाना मुश्किल था कि वास्तव में बगीचे में पुरुषों में से कौन यीशु है। केवल यहूदा यीशु और उसके चेलों के तरीके को अच्छी तरह से जानता था, जिसके कारणवश वो तुरंत प्रभु की पहचान कर सकता था। इसलिए उन्होंने एक योजना बनाई। जब वे बगीचे में पहुंचेंगे, यहूदा को यीशु के पास जाना था और गाल पर उन्हें चुंबन करना था। यह सैनिकों के लिए एक चिन्ह था कि वो ही यीशु था।

यहूदा प्रभु के पास गया और कहा, “‘नमस्ते गुरु!'” और यीशु को गाल पर चूमा।“‘यहूदा'” प्रभु ने कहा “‘क्या तुम एक चुंबन के साथ मनुष्य के पुत्र को धोखा दे रहे हो?'” तब उन्होंने कहा, “‘मेरे दोस्त, जिसके लिए तुम आए हो उसे करो।'” वो अपने विश्वासघाती के साथ कितनी नम्रता से पेश आए।

यह सभी बातों कुछ ही क्षणों में हो गई। कल्पना कीजिये सैनिकों की  अराजकता और खलल को जो दुःख, मदहोश नींद से उठकर आए थे। अचानक, रोमी सैनिकों और उनके जहरीला यहूदी नेताओं के चेहरे लालटेन की रोशनी में वहां खड़े दिख रहे थे। और यहूदा वहाँ था। क्या हो रहा था? क्या यही अंत था?

भय और तनाव और दहशत की लहर दौड़ पड़ी। यीशु के प्रति वफादार खड़े रहने का उनका उग्र निश्चय उनके दिल में उठा। “‘हे प्रभु, क्या हम तलवार से वार करे?'”उन्होंने कहा। निश्चित रूप से यह किसी भी अन्य परिस्थिति में एक निराशाजनक लड़ाई होती, लेकिन वे मसीहा के पक्ष में थे! वे सचमुच यीशु के लिए जान भी दे सकते थे।

जवाब के लिए इंतजार करने से पहले, शमौन पतरस ने अपनी तलवार खींच कर यीशु को जब्त करने वाले पुरुषों के खिलाफ वार किया। इसकी धार माल्कुस नामक महायाजक के एक दास के सिर पर लगी। पतरस के वार से उसका दाहिने कान कट गया। माल्कुस के पीड़ादायी चीख की कल्पना कीजिये। उस हत्याकांड की कल्पना कीजिये अगर सैनिक यहूदी नेताओं के बचाव में अपनी तलवार उठाते।

पर यीशु ने कहा: “बंद करो! इस से अधिक नहीं! ‘” सब लोग दंग रह गए। यीशु ने अपना हाथ बड़ा कर माल्कुस को चंगा किया, और पतरस से अपनी तलवार रखने को कहा। “‘जो कोई तलवार हाथ में ले लेंगे, वे सब तलवार से नष्ट हो जाएंगे,” उन्होंने कहा। “‘या फिर तुमको लगता है कि मै अपने पिता को विनती नहीं कर सकता हूँ, और वह एक ही बार में मेरे पास स्वर्गदूतों की बारह से अधिक फ़ौज नहीं डाल देंगे? कैसे फिर इंजील पूरी की जाएगी? यह इसी तरह से होना है। जो प्याला मेरे पिता ने मुझे दिया है, क्या मुझे उसे पीना नहीं चाहिए?”

वाह। पतरस को यह समझ में नहीं आया। यीशु उसे गिरफ्तार करने आए हुए पुरुषों की दया पर नहीं थे। उसके पिता ने उस रात की घटनाए ठहराई थी। धार्मिक नेता भी यह नहीं समझ पाए। उनको लगा कि वे एक विद्रोही, जवान उपदेशक को नष्ट करने के लिए आ रहे थे।

लेकिन यीशु जानते थे कि वह कौन था। वह स्वर्ग में अपने अधिकार को समझते थे।वह जानते थे कि उनके आदेश का पालन करने के लिए हजारों की तादाद में शानदार, शक्तिशाली स्वर्गदूतों तैयार खड़े है। उनके दिव्य योद्धा, एक आँख की झपकी में उस बगीचे में आए हर आदमी को नष्ट कर सकते थे। वे एक पल में यरूशलेम के पूरे शहर को नाश कर सकते थे। वे प्रभु के यहूदी दुश्मन और पूरे रोमी साम्राज्य का सफाया एक दिन में करके, उसे राजा बना सकते थे।

लेकिन यह पिता की योजना नहीं थी।उनके मन में एक बहुत बड़ी और गहरा जीत थी। जब प्रभु  दुनिया को जीतने आए थे, यह ठोस बल द्वारा नहीं था। ब्रह्मांड में सबसे बड़ी शक्ति हिंसा के रूप में नहीं आती है। यह सबसे उच्च परमेश्वर को समर्पण के रूप में आती है।

दुनिया शुरू होने से पहले, पिता और पुत्र ने इस उद्धार की योजना बनाई थी। उन्होंने इस्राएल के देश और उनके पवित्र वचन के माध्यम से दुनिया को इसके बारे में संकेत और छवियां दी थी। अब जब आखिरकार समय आ गया था कि परमेश्वर का पुत्र उद्धार लाए, अब कुछ भी उसे यह पूरा करने से  नहीं रोकेगी। वो आखरी क्षण तक अपने पिता का पालन करेंगे।

कहानी १३९: विजयी प्रवेश

मत्ती २६:६-१३, मरकुस १४:३-९, यूहन्ना ११:५५-१२:११

यहूदियों का फ़सह पर्व आने को था। बहुत से लोग अपने गाँवों से यरूशलेम चले गये थे ताकि वे फ़सह पर्व से पहले अपने को पवित्र कर लें। वे यीशु को खोज रहे थे। इसलिये जब वे मन्दिर में खड़े थे तो उन्होंने आपस में एक दूसरे से पूछना शुरू किया,कि आने वाले दिनों में क्या होगा।

महायाजक और फरीसी उन बातों से सचेत थे जो लोग आपस में कह रहे थे। वे अत्यंत क्रोधित हुए! उच्च सलाहकारों के स्थान में वे यह साज़िश कर रहे थे कि वे यीशु को कैसे पकड़वाएंगे। वे जानते थे कि भीड़ के सामने वे उसे नहीं पकड़ सकेंगे। वह बहुत ही प्रसिद्ध था और उत्तर देने में भी बहुत तेज़ था। वह उन्हें चतुरता में मात दे देता था और बातों तो घुमा देता था। वे लोगों के सामने उसके सवालों का उत्तर देने का जोखिम नहीं उठाना चाहते थे। उन्हें और कोई रास्ता ढूंढना था जब भीड़ ना हो। एक बार यदि वह गिरफ्तार हो गया और उसका परिक्षण हो गया तब तक बहुत देर हो जाएगी। साधारण लोग उस सच को ग्रहण कर लेंगे और आराधनालय को अनुमति दे देंगे कि यीशु को क्या सज़ा मिले। आदेश दे दिए गए। यदि किसी को मालूम हो कि यीशु कहाँ है तो उन्हें धार्मिल अगुवों को सूचित करना होगा।

इस बीच, यीशु अपने चेलों के साथ बैतनिय्याह को रवाना हो गया, जो दाऊद के शहर से कुछ ही मीलों दूर था। यह मरियम, मार्था और लाज़र का शहर था और वहीं लाज़र रहता था जिसे यीशु ने मृतकों में से जीवित किया था। वहाँ यीशु के लिये उन्होंने भोजन तैयार किया। इस कहानी के दिन, वे सब शमौन कोढ़ी के घर पर थे।

लाज़र उनके साथ था। मरियम उसकी बहन ने जटामाँसी से तैयार किया हुआ कोई आधा लीटर बहुमूल्य इत्र ले कर आई। यह शायद मरियम के दहेज़ का था जो उसे अपने पति को विवाह के ख़ज़ाने कि तरह देना था। मरियम ने तो अपना खज़ाना यीशु में पा लिया था। उसने उस बोतल को खोला और उसे उसके सिर पर उँडेल दिया। मरियम ने जटामाँसी से तैयार किया हुआ कोई आधा लीटर बहुमूल्य इत्र यीशु के पैरों पर लगाया और फिर अपने केशों से उसके चरणों को पोंछा।

उसके मधुर विनम्रता को देखिये जो उसने अपने प्रभु के प्रति अपनी भक्ति के साथ दिखाया। वह उस पर अपने सबसे महान तोहफे को उंडेल रही थी।

जब उसके शिष्यों ने यह देखा तो वे क्रोध में भर कर बोले, “इत्र की ऐसी बर्बादी क्यों की गयी? यह इत्र अच्छे दामों में बेचा जा सकता था और फिर उस धन को दीन दुखियों में बाँटा जा सकता था।” इससे आपको मरियम के महान तोहफे के बारे में पता चलता है। एक मज़दूर को पूरे साल के लिए तीन सौ दिनार मिलते हैं। उसने यह बात इसलिये नहीं कही थी कि उसे गरीबों की बहुत चिन्ता थी बल्कि वह तो स्वयं एक चोर था। और रूपयों की थैली उसी के पास रहती थी। उसमें जो डाला जाता उसे वह चुरा लेता था।

चेले यहूदा कि बात पर यकीन कर रहे थे। मरियम इतनी तुच्छ हरकत कैसे कर सकती थी? वे उसे डाटने लगे लेकिन यीशु ने उन्हें रोका। उसने कहा, “‘तुम इस स्त्री को क्यूँ तंग करते हो?'”

“‘उसने तो मेरे लिए एक सुन्दर काम किया है क्योंकि दीन दुःखी तो सदा तुम्हारे पास रहेंगे पर मैं तुम्हारे साथ सदा नहीं रहूँगा। उसने मेरे शरीर पर यह सुगंधित इत्र छिड़क कर मेरे गाड़े जाने की तैयारी की है। मैं तुमसे सच कहता हूँ समस्त संसार में जहाँ कहीं भी सुसमाचार का प्रचार-प्रसार किया जायेगा, वहीं इसकी याद में, जो कुछ इसने किया है, उसकी चर्चा होगी।’”  मत्ती २६:१०-१३ और मरकुस १४:८

कितना दयालू प्रभु है! और सबसे अचंबित बात यह है कि, हम पीछे मुड़ कर देख सकते हैं कि उसकी भविष्यवाणी पूरी हुई है। मरियम कि महान भक्ति के वर्णन तीनो सुसमाचारों में दिए हुए हैं। इसके विषय में पूरे संसार में बता दिया गया है!

यीशु बैतनिय्याह को रवाना हो गया, जहां वह लाज़र के साथ था और जिसे यीशु ने मृतकों में से जीवित किया था।

यीशु और लाज़र को देखने के लिए विशाल भीड़ इकट्ठा हो गयी। जो पर्व के लिए येरूशलेम जा रहे थे  उन्होंने बैतनिय्याह

जाने कि योजना बना ली। जो लाज़र को देखने गए थे उन्होंने यीशु पर विश्वास किया।

जब महायाजक के पास इसकी सूचना पहुँची तो उन्होंने सलाहकारों को बुला लिया। जब वे उस नयी परिस्थिति के विषय में चर्चा कर रहे थे, उन्होंने यह एहसास हुआ कि लाज़र उस महान चमत्कार का जीवित सबूत है। आज तक किसने सुना था कि किसी ने मौत के ऊपर भी अधिकार पाया हो? उनके पास उसे अस्वीकार करने और कोई रास्ता भी नहीं था।

वहाँ बहुत सारे लोग थे जिन्होंने अपनी आँखों से देखा था।

यह बहुत दिलचस्प है कि इससे धार्मिक अगुवे एक पल के लिए भी नहीं रुके। क्या वे उस मनुष्य को मारना चाहते थे जिसने एक मृतक को जीवित किया? क्या वे उसके साथ उलझना चाहते थे जिसके पास अकल्पनीय सामर्थ थी? उन्हें यह साबित करने के लिए कि वह मसीहा है वह और क्या कर सकता था? परन्तु धार्मिक अगुवों के अपने ईर्षा के कारण वे समझदार नहीं थे। नहीं, उन्होंने निर्णय लिया। इस यीशु का मरना अवश्य है और साथ में उसके साथी का भी।

कहनी १२७: लाजर का आश्चर्य

यूहन्ना ११:१७-५४

यीशु अपने चेलों के साथ बैतनिय्याह को गया। यह एक खतरनाक निर्णय था, जो वास्तव में नहीं था! यहूदी अगुवे यीशु को मार देना चाहते थे, और येरूशलेम छोड़ कर वह यरदन नदी को चला गया। केवल अभी के लिए, यीशु का मित्र लाज़र मर रहा था, और यीशु उसकी सहायता के लिए जा रहा था। फिर भी यीशु ने जाने से पहले बहुत दिन तक रुका रहा। क्यूँ? यह परमेश्वर कि इच्छा थी कि लाज़र मरे ताकि यीशु उसे कब्र से बाहर निकाल सके। इससे परमेश्वर कि महिमा होगी, और बहुत लोग विश्वास करेंगे, और उसके मित्रों का विश्वास भी बढ़ेगा। परमेश्वर के काम कई बार अनोखे लगते हैं, लेकिन उसका समय और कारण उत्तम होते हैं।

जब यीशु बैतनिय्याह पहुँचा, उन्हें पता चला कि लाज़र मर गया है, जैसा कि यीशु ने कहा था। लाज़र को कब्र में रखे चार दिन हो चुके हैं। बैतनिय्याह यरूशलेम से लगभग तीन किलोमीटर दूर था। भाई की मृत्यु पर मार्था और मरियम को सांत्वना देने के लिये बहुत से यहूदी लोग आये थे। इन स्त्रियों के दुःख कि कल्पना कीजिये। वे कितनी परेशां हो रही होंगी। उनका अपना प्रिया यीशु, जो दूसरों को चंगाई देता था और दूसरों को मुर्दों में से जिलाता था, उसने आने से इंकार कर दिया है। वह लाज़र को बचा सकता था! और अब चार दिन बाद, वह पहले आने वालों में से भी नहीं था जो आकर उनकी सुद्धि लेता।

जब मार्था ने सुना कि यीशु आया है तो वह उससे मिलने गयी। जबकि मरियम घर में ही रही। वहाँ जाकर मारथा ने यीशु से कहा,“हे प्रभु, यदि तू यहाँ होता तो मेरा भाई मरता नहीं। पर मैं जानती हूँ कि अब भी तू परमेश्वर से जो कुछ माँगेगा वह तुझे देगा।”

यीशु ने उससे कहा,“’तेरा भाई जी उठेगा।”

मार्था ने उससे कहा,“मैं जानती हूँ कि पुनरुत्थान के अन्तिम दिन वह जी उठेगा।” उसने नहीं समझा कि लाज़र उसी दिन जी उठने वाला है! 

यीशु ने उससे कहा,’“मैं ही पुनरुत्थान हूँ और मैं ही जीवन हूँ। वह जो मुझमें विश्वास करता है जियेगा। और हर वह, जो जीवित है और मुझमें विश्वास रखता है, कभी नहीं मरेगा। क्या तू यह विश्वास रखती है।’”

वह यीशु से बोली,“हाँ प्रभु, मैं विश्वास करती हूँ कि तू मसीह है, परमेश्वर का पुत्र जो जगत में आने वाला था।”

उसने घोषित कर दिया था, और इसलिए यह उसके लिए सच्च हो गया था। यह उज्जवल था और अनंतकाल के लिए था। यीशु ने उसके विश्वास को स्वीकार कर लिया था। यह उन धार्मिक अगुवों के बहस और सवालों के सामने कितना सुन्दर और साधारण था।

जब यीशु ने कहा कि वे जो उस पर विश्वास करते हैं वे कभी नहीं मरेंगे, तो क्या उसका मतलब शारीरिक मृत्यु से था? हम जानते हैं कि यह सच नहीं है। सभी चेले मर चुके हैं, और मार्था और मरियम भी। लेकिन उनकी मृत्यु हमेशा के लिए नहीं थी, यह केवल इस श्रापित दुनिया से निकल कर उस दूसरी दुनिया में जाने के लिए था। और वह दूसरी दुनिया, जहां यीशु राज करता है, वह एक शानदार जगह है!

फिर इतना कह कर वह वहाँ से चली गयी और अपनी बहन को अकेले में बुलाकर बोली,“गुरू यहीं है, वह तुझे बुला रहा है।” जब मरियम ने यह सुना तो वह तत्काल उठकर उससे मिलने चल दी।

जब बाकी के लोगों ने उसे ऐसे जल्दी में घर के अंदर जाते देखा, तब वे भी उसके पीछे चल दिए। यीशु अभी भी उसी स्थान में था जहां मार्था उसे मिली थी, और इसलिए वह  गाव में अभी नहीं गया था। मरियम जब वहाँ पहुँची जहाँ यीशु था तो यीशु को देखकर उसके चरणों में गिर पड़ी और बोली,“हे प्रभु, यदि तू यहाँ होता तो मेरा भाई मरता नहीं।”

इन दोनों मित्रो का दुःख कितना बड़ा था जब वे यीशु का इंतज़ार कर रहे थे। उन्होंने कितना दुःख सहा! यीशु ने अपने प्रिया मित्र पर नज़र डाली और श्राप के कारण मौत पर रोया। उसने देखा कि बाकी के परिवार जन लाज़र को खो देने के दुःख से रो रहे हैं, जो कि एक सिद्ध व्यक्ति था। बाइबिल बताती है कि यीशु “कि आत्मा तड़प उठी” उसे उनकी पीड़ा से नफ़रत थी! फिर भी जब वह उनके दुःख को देख कर उस समय के लिए दुखी था, वह जानता था कि आनंद अभी आना है।

इस पर जिन्होंने यीशु के आसूँ देखे वे कहने लगे,“देखो! यह लाज़र को कितना प्यार करता है।” लेकिन दूसरे केवल शिकायत करने लगे।

मगर उनमें से कुछ ने कहा,“यह व्यक्ति जिसने अंधे को आँखें दीं, क्या लाज़र को भी मरने से नहीं बचा सकता?” वे नहीं समझ पाये कि परमेश्वर का एक ऊंची योजना थी जो वह प्रकट करने जा रहा था। जो दुःख लाज़र, मरियम और मार्था को मिला, उसके बाद वे प्रभु को महिमा देने जा रहा हैं!

तब यीशु अपने मन में एक बार फिर बहुत अधिक व्याकुल हुआ और कब्र की तरफ गया। यह एक गुफा थी और उसका द्वार एक चट्टान से ढका हुआ था। लाज़र उसके अंदर था। यीशु ने उन्हीन पत्थर को हटाने को कहा। मार्था बोल उठी। वह अपने भाई कि यादों को अपमानित नहीं करना चाहती थी।

मार्था ने कहा,“हे प्रभु, अब तक तो वहाँ से दुर्गन्ध आ रही होगी क्योंकि उसे दफनाए चार दिन हो चुके हैं।”

यीशु ने उससे कहा,“’क्या मैंने तुझसे नहीं कहा कि यदि तू विश्वास करेगी तो परमेश्वर की महिमा का दर्शन पायेगी।’”

तब उन्होंने उस चट्टान को हटा दिया। और यीशु ने अपनी आँखें ऊपर उठाते हुए कहा,“’परम पिता मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ क्योंकि तूने मेरी सुन ली है। मैं जानता हूँ कि तू सदा मेरी सुनता है किन्तु चारों ओर इकट्ठी भीड़ के लिये मैंने यह कहा है जिससे वे यह मान सकें कि मुझे तूने भेजा है।’” 

यह एक बहुत ही अद्भुद प्रार्थना थी! यीशु जिस वार्तालाप को हमेशा अपने पिता के साथ करता था उसे ऊँची आवाज़ में कहा। यीशु यह दर्शा रहे थे कि लाज़र को जिलाना उसका परमेश्वर के प्रति प्रतिक्रिया थी, और उसे पूरा विश्वास था कि पिता उसे वह करने के लिए पूरी सामर्थ देगा!

उसने ऊँचे स्वर में पुकारा,“’लाज़र, बाहर आ!’” वह व्यक्ति जो मर चुका था बाहर निकल आया। उसके हाथ पैर अभी भी कफ़न में बँधे थे। उसका मुँह कपड़े में लिपटा हुआ था।

यीशु ने लोगों से कहा,“’इसे खोल दो और जाने दो।’”

लाज़र जी उठा था! थोड़े समय का दुःख था, परन्तु वह जी उठा था, और आनंद आ गया था। आप सोच सकते हैं कि मार्था और मरियम कैसे नाची होंगी? मृत्यु के श्राप ने यीशु के मित्रों को दुःख में दाल दिया था, लेकिन यीशु जीवन को वापस ले आया था। जिस समय वह पाप के शक्तिशाली असर को उल्टा कर रहा था, यीशु ने अपने उज्जवल महिमा को इस्राएल को प्रकट किया। यह परमेश्वर का राज्य था! और यीशु के मित्र उनमें से पहले थे जिन्होंने उसके नाम कि खातिर दुःख सहा था।

यीशु अपने आप को बलिदान होने के लिए दे रहा था, और यह स्पष्ट हो गया था कि उसके चेले भी परमेश्वर कि इच्छा के आगे समर्पित होने के लिए बुलाय गए हैं। यह एक ऐसी विनम्रता है जिसमे एक गहरे विश्वास कि आवश्यकता है। एक समय आता है जब लगता है कि बाहरी बातें संसार कि बातों से अधिक महत्वपूर्ण हैं। यह मानना ज़रूरी है कि परमेश्वर सामर्थी है, और इस दुनिया के बाद एक अनंतकाल का जीवन है, और एक आशा कि वह उन्हें बहुतायत से इनाम देगा जो पूरी लगन से उसे खोजते हैं।

जब यीशु ने मार्था से बात की और उससे पूछा की यदि वह विश्वास करती है, तो वह इसलिए नहीं था कि उसे विश्वास नहीं था। वह उसके विश्वास को उसमें और गहराई से खीचने के लिए ऐसा पूछ रहा था। उसे यीशु पर भरोसा करना था चाहे उसकी सबसे कीमती चीज़ कब्र में बंधी हुई थी। और जिस समय पूरा परिवार यीशु कि सामर्थ में मृत्यु से जीवन कि और जा रहा था, उनकी पहचान यीशु कि पहचान के साथ और भी गहरायी से बंध गयी थी। वह उनके लिए जीवन और आशा बन गया था! आशा कि कितनी अद्भुद छवि हम मृतोत्थान में देखते हैं जो एक दिन हमें अनंतकाल में ले जाएगा!

लाज़र अब जीवित और कुशल था। सोचिये इसके विषय में कैसे खबर फैली होगी। जो व्यक्ति वास्तव में मर गया था, वह यीशु के द्वारा जिलाया गया। येरूशलेम के यहूदि इसके सबसे पहले गवाह बने। उसमें कोई दोराय नहीं थी। लाज़र चार दिन से मृत था, और अब वह जीवित था।

राष्ट्र के लोग यहूदी अगुवों से जवाब मांगेंगे। इस यीशु के पास ऐसे सामर्थ कैसे हो सकती थी जब वह परमेश्वर कि ओर से नहीं था? यदि वह परमेश्वर कि ओर से था और मसीहा था, तो फिर इन अगुवों को क्या हुआ है? वे क्यूँ परमेश्वर के सेवक को मारना चाहते थे? क्या वे मनश्शे कि तरह थे जिन्होंने यशाया नबी को मार दिया था? जिस राजा कि स्मरणशक्ति से सारा इस्राएल नफ़रत करता था? जब यहूदी अगुवे यीशु के पास आये उसे शांत करने के लिए, और यीशु एक परमेश्वर के पुत्र कि तरह उस सामर्थ के साथ खड़ा हुआ था और निडर होकर सच्चाई को घोषित कर रहा था, इससे यह प्रकट हो रहा था केवल एक ही पक्ष सही हो सकता था। क्या यहूदी अगुवे पश्चाताप करेंगे? क्या वे इसे स्वीकार करेंगे कि मसीहा वास्तव में आया था? क्या परमेश्वर के पवित्र लोग विश्वास करेंगे?

बहुत से यहूदी जो मरियम और मार्था कि सुद्धि लेने आये थे, उन्होंने विश्वास किया जो उन्होंने देखा। अन्य लोग फरीसियों के पास गए और उसके विषय में बताया। वे येरूशलेम के महायाजक के पास गए और उन सब बातों के विषय में बताया। यह एक गम्भीर समस्या थी। अगर यह आदमी यीशु, सब लोगों को धोखा देता रहेगा, तो उसे रोकना मुश्किल हो जाएगा। स्पष्ट रूप से, फरीसी उसे रोक नहीं पा रहे थे।

फिर महायाजकों और फरीसियों ने यहूदियों की सबसे ऊँची परिषद बुलाई। और कहा,“हमें क्या करना चाहिये? यह व्यक्ति बहुत से आश्चर्य चिन्ह दिखा रहा है।” यह एक ईमानदार सवाल था। वे चमत्कारों को कैसे समझा सकते थे?

दूसरों ने कहा,”यदि हमने उसे ऐसे ही करते रहने दिया तो हर कोई उस पर विश्वास करने लगेगा और इस तरह रोमी लोग यहाँ आ जायेंगे और हमारे मन्दिर व देश को नष्ट कर देंगे।” वे इस बात का दावा कर रहे थे कि यीशु ज़बरदस्ती करके रोमियों को इस्राएल से निकाल देगा। वे मंदिर को नष्ट कर देंगे और राष्ट्र को खतम करके सब कुछ शांत कर देंगे। अगले कुछ हफ़्तों के अध्ययन में, यह बहुत स्पष्ट हो जाएगा कि यह सब कितना हास्यास्पद था। रोमी लोग यीशु के विषय में इतना नहीं जानते थे और उससे उनको कोई परेशानी नहीं थी। पिलातुस, जो रोम का सरदार था, वह यीशु को नहीं जानता था। लेकिन इन यहूदी अगुवों के पास अच्छा बहन था यीशु को मरवाने का, और वे इसे मानने को तैयार नहीं थे कि वे उससे जलते थे।

फिर कैफा बोल उठा। वह यहूदी कौम का महायाजक था। अपने सत्र पूरे पर वह अठारा साल तक राज कर चूका होगा। उसे यह पद इतने सालों इसलिए नहीं मिला कि वह एक सच्चा अगुवा था या परमेश्वर उसके राज से प्रसन्न था। वह और उसका ससुर अन्नास मंदिर में और आयहूदी धर्म पर एक बहुत राजवंशीय अधिकार सम्भाल रहे थे, अपने अधिकार को पकड़े रहने के लिए भ्रष्टाचार और हेरा फेरी का उपयोग कर रहे थे। उन्होंने परमेश्वर कि ओर से दिए हुए कार्य को जो उसने अपने लोगों के लिए दिया, अपने स्वार्थ के लिए उपयोग किया। यीशु में, उन्हें एक नया दुश्मन मिल गया था जिस पर उनका कोई नियंत्रण नहीं था। वे उस पर अपने पूरे अधिकार को नहीं चला पाये।

महायाजक कैफा ने उनसे कहा,“तुम लोग कुछ भी नहीं जानते। और न ही तुम्हें इस बात की समझ है कि इसी में तुम्हारा लाभ है कि बजाय इसके कि सारी जाति ही नष्ट हो जाये, सबके लिये एक आदमी को मारना होगा।”

कैफा ने पहले ही निर्णय ले लिया था। यीशु को मरना था। उसे एक सिद्द परिक्षण देने का उसका कोई इरादा नहीं था। दोनों पक्ष कि बातों को सुनने का कोई इरादा नही था। जो इस पर अपनी आवाज़ उठाते थे उनको शांत कर दिया जाता था।

जिस प्रकार कैफा ने बोला वह कितना दिलचस्प था। यीशु को मरना आवश्यक था ताकि राष्ट्र बच सके। परन्तु कैफा ने परमेश्वार कि ओर से दी हुई बुद्धि से कहा। सबसे ऊंचे महायाजक ने इस्राएल के महायाजक को इस भविष्यवाणी को घोषित करने के लिए नियमित किया था, चाहे वह यीशु के पीछे चलता है या नहीं। यीशु वास्तव में राष्ट्र के लिए मरने वाला था। जिस समय यूहन्ना इस कहानी को लिख रहा था, वह च्चता था कि हम निश्चित रूप से इसे समझ लें। उसने कहा कि यीशु ना केवल इस्राएल के देश के लिए मरा, परन्तु उन सब परमेश्वर के बच्चों के लिए जो इस संसार में तितर बितर हैं। वह हमारे विषय में कह रहा था!

इस घोषणा का व्यंग्य यह है कि जिस बात को कैफा टालना चाहता था, वही बात सच्च हुई। कई सालों पश्चात्, यूहन्ना इसके विषय में जान जाता जब वह इस कहानी को लिख रहा था। उसे यह बहुत आश्चार्यजनक लगा होगा। 70 AD में, रोमी राज ने येरूशलेम पर कब्ज़ा कर लिया था और उसे पूरी तरह से नष्ट कर दिया था, और इस्राएल देश अगले दो सौ साल तक मौजूद नहीं होगा।

यहूदियों के आराधनालय ने अपने महायाजक के साथ निर्णय ले लिया था। उस समय से, वे साज़िश कर रहे थे कि कैसे सब करेंगे। क्यूंकि यह इतना आसान नहीं था। उनके पास कोई भी कानूनी कारण नहीं था यीशु को मरवाने का। उसने कुछ भी गलत नहीं किया था। वे उसे किसी भी प्रकार के धोखे में नहीं पकड़ सकते थे, लेकिन वे फिर भी रुकने वाले नहीं थे। और इस्राएल में बहुत लोग यीशु पर विश्वास करते थे। यदि वे यीशु को लोगों के सामने पकड़ते हैं, तो दंगे हो जाएंगे। फिर भी वह लोगों से घिरा हुआ रहता था। वे उसे बिना जाने कैसे पकड़ सकते थे?

यहूदियों के आराधनालय कि योजना के विषय में सबको पता लग गया था। अचानक सब कुछ बहुत खतरनाक हो गया था। यीशु यहूदी लोगों के बीच में अब नहीं जा सकता था। इस्राएल में बहुत से थे जो इस आराधनालय के पक्ष में होकर कुछ फ़ायदा उठा सकेंगे। यरूशलेम छोड़कर वह निर्जन रेगिस्तान के पास इफ्राईम नगर जा कर अपने शिष्यों के साथ रहने लगा।

कहानी १९: परमेश्वर के प्रेम का पुत्र 

युहन्ना १ः१-३, ९-१३

जब मत्ती, मरकुस, और लूका ने सुसमाचार के विषय में अपनी अपनी कहानियाँ लिखीं, वे मसीह का यह चित्र दिखाना चाहते थे : वह मनुष्य जो परमेश्वर था । उनकी कहानियाँ मसीह के जन्म से आरम्भ होती हैं, और जो शानदार भाविश्यद्वानियाँ उसके जन्म के विषय में की गयी थीं, उनकी पूर्ती का वर्णन करती हैं । वे यह दिखाना चाहते थे कि यह मनुष्य वास्तव में इम्मानुएल था, परमेश्वर हमारे साथ ।  यह तीन पुस्तकें मसीहत के शुरूआती दिनों में लिखी गयी थीं, और उस दौर में बाँटी गयी थीं जब युवा कलीसियाएं मसीह को जानने लगी थीं, और समझने लगी थीं की मसीह के लिए जीवन कैसे व्यतीत किया जाता है । जब युहन्ना प्रेरित ने अपना सुसमाचार लिखा, तो काफ़ी समय बीत चूका था । पौलुस प्रेरित जैसे मसीही सेवकों के कार्य के माध्यम से पूरे रोमन साम्राज्य में कलीसिया स्थापित हो चुकी थी । पहले तीन लेखकों के सुसमाचार स्थानीय कलीसियाओं में दशकों से बाँटे गए थे; पौलुस, पतरस और याकूब की पत्रियों के साथ ।

जब आप युहन्ना की पुस्तक पढ़ेंगे, आप देखेंगे कि यह सुसमाचार पहले तीन सुसमाचारों से बहुत अलग है । युहन्ना यीशु के बारह चेलों में से एक था । वह रिश्तेदारी में यीशु का छोटा भाई भी था । युहन्ना वह आदमी था जो क्रूस के सामने यीशु की माता और मरियम मगदलीनी के साथ खड़ा था । जब यीशु ने हमारे पापों का कष्ट सहा, उसने क्रूस से नीचे देखा और युहन्ना को यह ज़िम्मेदारी सौंपी कि यीशु के जाने के बाद वह उसकी माता का ध्यान रखे । युहन्ना ने अपना बाकी जीवन मसीह की सेवकाई में व्यतीत किया, कलीसिया के निर्माण के कार्य में । कलीसियाई परम्परा के अनुसार, युहन्ना ने अपने कई वर्ष एफेसुस में बिताए, और मरियम उसके साथ रही । और जबकि यीशु के बाकी चेलों को उनके विशवास के कारण मार डाला गया, युहन्ना जीवित रहा कलीसिया की अगली पीड़ी की अगुआई करने के लिए । उसने तीन ऐसी पत्रियाँ लिखीं जो शास्त्रों में जोड़ी गयीं, और उसने शास्त्रों की आखरी पुस्तक को भी लिखा, जिसका नाम प्रकाशितवाक्य है । इस पुस्तक में युहन्ना ने कलीसिया को उस दिन की अद्भुत कहानी सुनाई जब उसे स्वर्ग में ले जाया गया था, अंतिम समय के आनेवाली घटनाओं को देखने के लिए; जब मसीह ने शैतन, पाप और मृत्यु पर अपनी अंतिम जय पाई ।

प्रकाशितवाक्य में हम यीशु का ऐसा चित्रण देखते हैं, जो पहले पढ़े गए “धरती पर चलने वाले मनुष्य” के चित्रण से बढ़कर है । युहन्ना के चित्र में पराक्रमी और सामर्थी राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु दिखाई देता है, कायनात का सर्वशक्तिमान शासक । जब युहन्ना प्रतापवान और महिमान्वित मसीह को आते देखता है, तो वह भयभीत होकर चेहरे के बल दण्डवत करता है! इन बातों से हम यह समझ सकते हैं कि जब यीशु मनुष्य बनकर धरती पर आया था, तो उसने अपने शानदार स्थान, स्वयं परमेश्वर के सिंहासन से, अपने आप को नम्र बनाया था । जबकि उसके धरती पर चलने के समय में भी वह सारी सृष्टि का परमेश्वर बना रहा, उसकी ईश्वरीय सामर्थ्य छिपी हुई थी, और वह मनुष्यों के सीमित सामर्थ्य के साथ जिया । जब हम यीशु के चमत्कारी कार्यों या ज्ञान को देखते हैं, हम जानते हैं कि वह अपनी स्वयं ही की ईश्वरीय सामर्थ्य पर भरोसा नहीं रख रहा था, बल्कि वह पूरी तरह से पिता परमेश्वर की सामर्थ्य पर निर्भर था ।

जब युहन्ना ने अपना सुसमाचार लिखा, वह दिखाना चाहता था कि यीशु ही गौरवान्वित परमेश्वर का पुत्र था जो अनंतकाल से है । यीशु वह पुत्र है जिसने सिंहासन को छोड़ा, और मनुष्य का उद्धार सिद्ध करने के लिए समय में प्रवेश किया । और जब उसने जय प्राप्त की, वह अपने उचित स्थान पर लौटा, उस सिंहासन पर जहां से वह अनंतकाल के लिए शासन करेगा । युहन्ना यह भी दिखाना चाहता था की जब यीशु नयी वाचा को लेकर आया, उसने केवल पुराने यहूदी रिवाजों और मंदिर पूजा को त्याग नहीं दिया । बल्कि यीशु अराधना और विश्वासी जीवन का केंद्र बन गया । यीशु के गहरे, स्थायी प्रेम में, और उसके साथ रिश्ता रखने में सब कुछ पाया जा सकता था! सारी यहूदी परम्पराएं और प्रतीक और जीवन के तौर-तरीके परमेश्वर का साधन थे, एक ऐसा देश बनाने के लिए जो परमेश्वर के गौरवशाली पुत्र के आने का संकेत करते थे । और जब वह धरती पर आ गया, वे पुराने रिवाज़ अनिवार्य नहीं रहे! मसीह में जीवन का नया तरीका था, और जो मसीह के अपने लोग थे वे एक नयी वाचा के लोग थे!

क्योंकि युहन्ना यह सब बातें सिखाना चाहता था, उसने अपनी पुस्तक को बहुत ही विशेष तौर से आरम्भ किया । यीशु की वंशावली या उसके जन्म का वर्णन न करते हुए, युहन्ना ने यीशु के अनंत जीवन के विषय मेंबताया, जो मनुष्यों के उद्धार की योजना से भी पहले था । युहन्ना ने यह लिखा :

आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था । यही आदि में परमेश्वर के साथ था । सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उस में से कोई भी वास्तु उसके बिनाउत्पन्न न हुई ।”

युहन्ना १ः१-३

क्या आपने इस बात को समझा? और क्या आपको याद है की पुराने नियम के पहले शब्द क्या हैं? वे यह हैं : “आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की ।” अब युहन्ना विस्तार से लिख रहा है । पुराने नियममें, “परमेश्वर का वचन” यह कहने का तरीका था कि परमेश्वर ने बोल है । और क्योंकि परमेश्वर सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और सम्पूर्णता से सिद्ध है, जो भी उसने कहा है, अवश्य उसके कहे अनुसार ही होगा । जब वहबोलता है, चीज़ें होती हैं!

अब युहन्ना बताता है कि जब और जैसे परमेश्वर पिता कायनात की सृष्टि कर रहा था, यीशु वहीं उसके साथ उपस्थित था । वह परमेश्वर के साथ था, जिसका अर्थ है कि वह परमेश्वर के साथ रिश्ता भी रखता था,लेकिन स्वयं परमेश्वर भी था । हमारे लिए यह समझना कठिन है ना, की यीशु एक ही साथ यह दोनों कैसे हो सकता है? लेकिन बाईबल की शिक्षा यही है! किसी तरह से यह सत्य है कि परमेश्वर पिता और परमेश्वर पुत्रएक दूसरे के साथ सिद्ध रिश्ते में हैं, लेकिन फिर भी दोनों एक हैं!

नया नियम इस सत्य को प्रकाशित करता है की जब शास्त्र “वचन” का वर्णन करते हैं, वह यीशु के विषय में बता रहे हैं । युहन्ना 1:1-3 दोबारा पढ़िए, और इस बार जब भी आप “वचन” का वर्णन देखें, उस शब्द को “यीशु”के नाम से बदल दें । क्योंकि देखिये, यीशु ही वह वचन है! समस्त सृष्टि उसी से उत्पन्न हुई! गौरवशाली तारों और एकांत के चन्द्रमा के बारे में सोचिये! दहाड़ती नदियों और गरजती लेहेरों के बारे में सोचिये! वह हर एकचीज़ जो परमेश्वर ने रची है, उसने अपने पुत्र की सामर्थ्य में रची है । किसी प्रकार से परमेश्वर के वचन की सामर्थ्य यीशु मसीह की महिमा के द्वारा आई । बाईबल की एक अन्य पुस्तक में पौलुस प्रेरित इसी बात कोऔर विस्तार से समझाते हैं:

“वह तो अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप और साड़ी सृष्टि में पहलौठा है । क्योंकि उसी में सारी वस्तुओं की सृष्टि हुई, स्वर्ग की हो या अथवा पृथ्वी की, देखि या अनदेखी, क्या सिंहासन, क्या प्रभुताएं, क्या प्रधानताएं, क्याअधिकारानें, सारी वस्तुएं उसी के द्वारा और उसी के लिए सृजी गयी हैं । और वाही सब वस्तुओं में प्रथम है, और सब वस्तुएं उसी में स्थिर रहती हैं ।” कुलुस्सियों १ः१५-१७

वाह! प्रभु यीशु अनंतकाल से परमेश्वर पिता के साथ उपस्थित रहा है ! यह महान सत्य इतने विशाल हैं कि हमें समझने में कुछ कठिनाई महसूस हो सकती है । और यह भी अनोखी बात है ना? सर्वोच्च परमेश्वर हमारीतुलना में इतना वैभवशाली होना चाहिए कि हम उस के विषय में हर बात को नहीं समझ सकते! यद्यपि इन बातों को मनुष्यों के बीच सिखाना और समझाना महत्वपूर्ण है, लेकिन यह भी अनुचित नहीं कि इन में से कुछबातें रहस्यमय मालूम पड़ती हैं । क्या हम पशुओं को पढ़ना या फूलों को गीत गाना सिखाते हैं?  लेकिन जो अंतर एक गाते हुए, पढ़ते हुए मनुष्य के मुकाबले पशु या फूल में है, उस से कई ज़्यादा अंतर हमारे औरपरमेश्वर के बीच में है । ऐसी कई चीज़ें हैं जो परमेश्वर कर और समझ सकता है, जो हम नहीं कर या समझ सकते ।