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कहनी १३२: पवित्र विवाह 

मत्ती १९:१-१२, मरकुस १०:१-१२

यीशु ने जब प्रार्थना के विषय में अपनी आश्चर्यजनक लेकिन उज्ज्वल, स्वच्छ शिक्षाओं को समाप्त किया, वे उत्तर के क्षेत्र से पेरी कि ओर गए। उन्होंने यरदन के उस पार, यहूदिया के क्षेत्र में सफ़र किया। फिर भीड़ उसे घेरी रही और वह उन्हें एक एक कर के चंगाई देता गया। कल्पना कीजिये, कि कैसे लोग उसके अद्भुद चमत्कारों को देखकर अचंबित हुए होंगे, और चंगाई पा कर कैसे आनंद मना रहे होंगे! वे उसकी शिक्षा को ध्यानपूर्वक सुनते रहते होंगे। हज़ारों सालों में इस्राइल में ऐसा देखने को नहीं मिला होगा। यह व्यक्ति कौन हो सकता है?

उसके उज्जवल, राज्य के कार्य के बीच, कुछ फरीसी यीशु के पास आये। उन्होंने बहुत चतुरतापूर्वक ऐसे सवाल पूछने के लिए तैयार जिससे कि वे उसे फसा सकें। यदि वे यीशु को व्यवस्था के विरुद्ध को बोलने के लिए उक्सा सकते हैं तो उन्हें उसे पकड़ने का अच्छा कारण मिल जाएगा। सो उन्होंने उससे पुछा,“क्या यह उचित है कि कोई अपनी पत्नी को किसी भी कारण से तलाक दे सकता है?”

यीशु ने उत्तर दिया;
“’क्या तुमने शास्त्र में नहीं पढ़ा कि जगत को रचने वाले ने प्रारम्भ में,‘उन्हें एक स्त्री और एक पुरुष के रूप में रचा था?’ और कहा था ‘इसी कारण अपने माता-पिता को छोड़ कर पुरुष अपनी पत्नी के साथ दो होते हुए भी एक शरीर होकर रहेगा।’ सो वे दो नहीं रहते बल्कि एक रूप हो जाते हैं। इसलिए जिसे परमेश्वर ने जोड़ा है उसे किसी भी मनुष्य को अलग नहीं करना चाहिये।’”

यह कितना शुद्ध और पवित्र कल्पनीय है। कितना ख़ूबसूरत सच है! यह सीधे सृष्टि कि कहानी से लिया गया है! विवाह समय के शुरू में ही दो आत्माओं के संगम कि शुरुआत थी। परमेश्वर के उत्तम बगीचे में, उसने आदम और हव्वा को सिद्ध प्रेम में बाँध दिया था। परमेश्वर निरंतर अपने बच्चों को उस सिधत्ता के प्रति प्रयास करने के लिए बुलाता रहता है जो स्वर्ग के लिए बनाई गयी है।

लेकिन फरीसियों को परमेश्वर कि अच्छी बातों में दिलचस्पी नहीं थी। वे बस यीशु को किसी गलत इलज़ाम में फ़साने के प्रयास में लगे रहते थे। सोचिये उस भीड़ के बारे में जो अपने कुलीन अगुवों को यह कहते सुनते रहते हैं कि कैसे वे यीशु को फिर से कैसे गिराएंगे! वे बोले,“फिर मूसा ने यह क्यों निर्धारित किया है कि कोई पुरुष अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है। शर्त यह है कि वह उसे तलाक नामा लिख कर दे।”

यीशु ने उनसे कहा,
“’मूसा ने यह विधान तुम लोगों के मन की जड़ता के कारण दिया था। किन्तु प्रारम्भ में ऐसी रीति नहीं थी।तो मैं तुमसे कहता हूँ कि जो व्यभिचार को छोड़कर अपनी पत्नी को किसी और कारण से त्यागता है और किसी दूसरी स्त्री की ब्याहता है तो वह व्यभिचार करता है।’”

एक बार फिर से यीशु ने उन फरीसियों के टेढ़े शब्दों को लेकर सब कुछ सीधा कर दिया। फरीसी व्यवस्थाविवरण २४:१-४ के विषय में बात कर रहे थे। उस आज्ञा में, मूसा कहता है कि, यदि कोई पुरुष अपनी पत्नी को विश्वासघाती पाता है और वह दूसरे पुरुष से विवाह करती है और फिर वह उसे तलाक देता है, उसके पहला पाती दुबारा विवाह नहीं कर सकता है। यह परमेश्वर द्वारा स्थापित विवाह के विरुद्ध एक बहुत ही घिनौना पाप है। जो व्यव्यस्था यहूदियों को तलाक से दूर रहने के लिए बनाई गयी थी, वे उसे तलाक को उचित सही साबित करने के लिए उपयोग कर रहे थे। एक बार फिर, यीशु ने अन्धकार के श्राप को शुद्ध ज्योति से ढांप दिया।

फिर भी यहूदी लोगों में फरीसियों कि शिक्षाएँ बहुत गहरायी से उतर रही थीं। बाद में, जब वे भीड़ के बीच से अपने घर को चले गए, वे चर्चा करते रहे। उन्होंने कहा,”यदि यही दशा पति पत्नी के बीच रही, तो विवाह ना करना ही अच्छा है!”

फिर यीशु ने उनसे कहा,
“’हर कोई तो इस उपदेश को ग्रहण नहीं कर सकता। इसे बस वे ही ग्रहण कर सकते हैं जिनको इसकी क्षमता प्रदान की गयी है। कुछ ऐसे हैं जो अपनी माँ के गर्भ से ही नपुंसक पैदा हुए हैं। और कुछ ऐसे हैं जो लोगों द्वारा नपुंसक बना दिये गये हैं। और अंत में कुछ ऐसे हैं जिन्होंने स्वर्ग के राज्य के कारण विवाह नहीं करने का निश्चय किया है। जो इस उपदेश को ले सकता है ले।’”

यीशु एक चेतावनी दे रहे थे। जब चेलों ने कहा कि “इससे बेहतर है विवाह ना करें” तब यीशु ने कहा,”तुम ठीक कहते हो!” अदन के बगीचे में, विवाह परमेश्वर का अपनी रूप को प्रदर्शित करने कि परम योजना थी। परन्तु पाप के कारण बहुत सी चीज़ें टूट गयीं। इस श्राप के समय में, परमेश्वर के विशेष  युद्ध करने वाले सेवकों को बुलाया गया है। वे विवाह के के अद्भुद ख़ज़ाने को एक तरफ रख कर परमेश्वर के राज्य के प्रति पूर्ण सेवा करने के लिए उनका त्याग कर देते हैं। परन्तु मनुष्य विवाह के प्रति जोश और भावना से भरे होता है जिन्हें परमेश्वर ने विवाह को सम्पूर्ण करने के लिए बनाया है। हमें साझेदारी के लिए  बनाया गया है, अपने पति या पत्नी के साथ एक मन होने के लिए बनाये गए हैं। बहुत से लोग विवाह में समर्पित होने के लिए तैयार नहीं होते हैं। विवाह से हट कर उस जीवन को अपनाने कि सामर्थ ही परमेश्वर का एक पवित्र। तोहफा है। यह उस उच्च और पवित्र बुलाहट है!

जब हम यीशु के चेलों के जीवन कि ओर देखते हैं, हम उस सामर्थी तोहफे को देखते हैं! जब उनके जीवन जोखिम में थे, और जब उन पर पथराव हो रहा था, और जब वे अनजान जगाहों में जाया करते थे, उन्हें अपने बाल बच्चे पीछे छोड़ने में कोई भय नहीं था। उन्होंने इस संसार कि सब अच्छी चीज़ों का त्याग कर दिया था क्यूंकि उन्हें स्वर्ग कि उन उत्तम चीज़ों का स्वर्गीय दर्शन मिला हुआ था। यीशु के लिए आत्माओं को जीतना और उस महान महिमा को पाने के लिए वे इस संसार कि चीज़ों को तुच्छ समझते थे!